सुनीता कुमारी
रह जाती है यादें उनदिनों की,
जो पल बिताए थे आपके साथ, ,
जीना मुश्किल हो जाता है,
उनकी यादों के साथ,
दिल में कशिश उठती है ,
पर मिल नहीं पाते हो आप ,
माँ तुम अमर हो I
सुबह सर्वप्रथम उठकर ,
ईश्वर को करती थी प्रणाम आप,
घर की खिड़की खोल,
सबसे पहले सूर्य की रौशनी लाती थीं ,आप,
बच्चों को अपने उठने की आहट ,
न आने देती थीं आप,
सभी की इच्छाओं को,
प्यार की छाँव में,
सब पर न्यौछावर करती थीं आप ,
रह जाती है, यादें उनदिनों की,
जो पल बिताए थे साथ,
दिल में कशिश उठती है ,
पर मिल नहीं,पाते हो आप ,
माँ तुम अमर हो I
हर दिन तप्ती आग में
रोटी के साथ, रोटी नहीं जलती थी,
जल जाती थी माँ की हाथ ,
घर की चौखट पर ,
बिखरी होती थी सब की इच्छाएँ ,
प्यार की छाँव में,
सब पर न्यौछावर करती थीं आप ,
रह जाती है, यादें उनदिनों की,
जो पल बिताए थे साथ,
दिल में कशिश उठती है ,
पर मिल नहीं पाते हो आप ,
माँ तुम अमर हो I
सारा दिन काम करके,
थकान की शिकन न लेती थीं आप,
अपनी दुःखों तथा मुश्किलों की गठरी,
बंद कमरें में खोलती थीं ,आप,
आँसुओं की गरल पीकर,सोती थीं आप,
रह जाती है यादें, उनदिनों की,
जो पल बिताए थे साथ ,
दिल में कशिश उठती है ,
पर मिल नहीं पाते हो आप ,
माँ तुम अमर हो I
“करना माँ का सम्मान,
उससे बढ़ेगा तेरा मान,”
बहुत खूब