सुशीला तिवारी , पश्चिम गांव ,रायबरेली
मुहब्बत
उसने देखा जो मुझे पलटकर, मुहब्बत से ।
ऐसा लगने लगा जैसे देखा ,,नही मुद्दत से ।।
मन मुताबिक हमसफ़र, मिल जाये तो,
हयात -ए- सफर कट जायेगा मुहब्बत से ।
हम जो पहुँचे महफिल -ए-जश्न में उनके,
हर एक शक्स देख रहा था ,,मुझे हैरत से ।
ख्वाहिशों को अगर थोड़ी हवा मिल सके,
जी लेगा जिन्दगी को इन्सान ए फितरत से ।
दिया उसने निशानी फूल एक लेकर मुझे,
हमने भी छुपाकर रख लिया हिफाज़त से ।
सर को झुका कर सजदा पहले किया था,
ये “सुशीला” झुक गई फिर तो सदाकत से ।
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उल्फत
दीप उल्फत के जले जो, ,,,बुझाकर रख दिए ।
सोये थे अरमान जो सब , जगाकर रख दिये ।।
उस बेवफा को शायद वफा न रास आई,
इसलिए मेरे लिखे सब खत जलाकर रख दिये ।
कुछ उम्मीदें दिल में बिखरी समेटो इस तरह,
जैसे हो सामान सारा सब , ,सजाकर रख दिये ।
थी तमन्ना दिल में मेरे उनसे मिलने की मगर ,
दिल की तमन्ना दिल में ही,,,, दबाकर रख दिये ।
फूल माला था चढ़ाया नाम उनका ले लिया,
है शहीदों का दिवस, दीपक जलाकर रख दिये ।
“सुशीला”तरीके और भी थे भूल जाने के मुझे,
उसने मेरे नाम के सब खत ,जलाकर रख दिये ।
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आईना
सामने आईना संवरना नही आया हमको
इश्क में गहरे उतरना,, नही आया हमको ।
रूह में तुमने घर बना लिया है मेरे लेकिन,
इश्क में गहरे उतरना ,,,नही आया हमको ।
तुमने अपनी तरफ से हर पैतरे संभाले हैं,
इश्क में गहरे उतरना ,,,नही आया हमको ।
है मेरे किरदार में ऐसी कुछ सादगी बसती
बात सुन लेती झगड़ना नही आया हमको ।
सुशीला”मेरे लहजे में जरा भी तल्खी नही,
मुहब्बत है अकड़ना नही ,,,,,आया हमको ।
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