नीलिमा तैलंग, दग्धा, पन्ना (मध्य प्रदेश)
विवेक मयंक जी को नमिता दीदी के पास छोड़ कर अपने कमरे में चला गया ।
पहली बार नमिता किसी पुरुष से दिल खोल कर बात कर रही थी ।मयंक भी नमिता को अपने जीवन के अनुभव ,ऑफिस की बातें सुना रहे थे ।नमिता भी उनकी बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी ।नमिता को मयंक जी ने एक नजर में पसंद कर लिया था । अपने कमरे के दरवाजे के पीछे छुपे हुए विवेक और उसकी पत्नी दीदी की खुशी देख कर शादी के लिए उनकी सहमति का अंदाज लगा चुके थे ।
मयंक जी दो घंटे नमिता के साथ बैठ कर चले गए ।विवेक उनको बाहर तक छोड़ कर जब वापिस आया तो उसने दीदी को पहली बार कोई फिल्मी गाना गुनगुनाते हुए सुना।
मयंक जी के जाने के बाद नमिता अपने कमरे में चली गई ।
नमिता को लग रहा था कि वर्षों बाद आज वह बेहद खुश है।उसे लग रहा था वह भी आज अन्य लड़कियों की तरह हंसे ,झूमे,नाचे गाए । उसे लग रहा था आज वो प्रौढ़ता की उम्र को पहुंचती साधारण सी नमिता नहीं एक असाधारण सुंदर षोडशी कन्या है।उसने आज वर्षों से बंद पड़ी अपनी साड़ियों की अलमारी खोली और अपनी मनपसंद गुलाबी साड़ी और उसके मैचिंग के कंगन पहन लिए।माथे पर काली बिंदी लगा कर उसने जब आईना देखा तो स्वयं ही लजा गई।उसने महसूस किया कि उसने तो आज से पहले कभी स्वयं को इस नजर से देखा ही नहीं था।
अगले दिन नमिता देर तक सोती रही । खिड़कियों से सुबह की सुनहरी किरणे कमरे में प्रवेश कर रही थीं ।जैसे ही उसकी नींद टूटी नित्य की भांति उसकी नजर सबसे पहले अपनी मां की तस्वीर पर पड़ी ।अचानक वह उठ कर बैठ गई ।उसके सतरंगी सपने झन्न से टूट कर चकनाचूर हो गए ।उसे लगा जैसे ये सूरज की किरणें उसके अस्तित्व को जला कर राख कर देंगी । प्रातः काल का मनभावन समय उसको नर्क के वातावरण जैसा जहरीला लग रहा था ।
उसने उठ कर खिड़कियों पर पर्दे खींच दिए ।कमरे में अंधेरा छा गया ।वह अपने ही बिस्तर पर सिकुड़ कर बैठ गई थी।
इतने में विवेक ने धीरे से दरवाजा खोलते हुए दीदी को आवाज दी और बिस्तर पर उसके पास ही बैठ गया ।उसे पूरा विश्वास था कि इस बार उसकी दीदी ने शादी के लिए जरूर मन बना लिया होगा ।
उसने दीदी से बड़े प्यार से पूछा “दीदी मयंक जी को हां कह दूं न??
नमिता बड़ी मुश्किल से बोल पाई ” नहीं”।
विवेक ने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा ,”आखिर क्यों दीदी ? क्या कमी है मयंक जी में ??
नमिता कुछ देर तक चुप चाप बैठी रही ।मयंक की आँखें अपनी दीदी के चेहरे के भाव पढ़ने में असमर्थ हो रही थीं ।
विवेक ने एक बार फिर नमिता से पूछा,” बोलो न दीदी मयंक जी से क्यों शादी नहीं करना चाहतीं आप जबकि आपका चेहरा बता रहा है कि आप भी मयंक जी को पसंद करती हैं “।
नमिता ने अपनी मां की फोटो की तरफ देखते हुए कहा
विवेक तू और चाहे जिससे कहेगा मैं शादी करने को तैयार हूं लेकिन मयंक जी से नहीं क्योंकि मुझे डर है कि कहीं मैं भी मां की तरह ……….
नमिता अपने गालों पर बहते हुए आंसुओं को पोंछते हुए ईश्वर से स्वयं को “कठोर” बने रहने की प्रार्थना कर रही थी ।
(काल्पनिक रचना)
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