रचनाकार : सुशीला तिवारी रायबरेली
पाती रक्षाबंधन पर
सुनो !
आज भाभी की पाती आई,
दीदी राखी में कब आ रही हो ,
मैं जानती हूँ पढ़ कर मुस्कुरा रही हो ,
नहीं आऊंगी अबकी बार ये कहकर चिढ़ा रही हो,
पर आना जरूर ननद बाई,
राह तक रही है भौजाई ,
और हां !
दरवाजे पर जो नीम का पेड़ है ,
बेसब्री से राहें तकता है,
बुला रही है मैके की अंगनाई,
याद कर रही है भाई की कलाई ,
बच्चे मचल रहे हैं बुआ की मिठाई खाने को,
मां को आस लगी है बेटी के आ जाने को,
समझ गई मैं शब्दों की गहराई,
पढ़ कर मेरी आंखे भर आई ,
तैयार हो चली पीहर जाने को
इतने प्यार से कौन कहता है आ जाने को
पिता की तरह भाई भी कहता है
अब कब तक आओगी !
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भइया मेरे
भइया मेरे ,अबकी राखी में आ जाना ।
भइया मेरे , कोई चलेगा न बहाना ।।
तेरी बहन हर साल है आती,
तुमसे अपना रिश्ता निभाती,
भइया मेरे, अबकी पड़ेगा तुम्हे आना।
कुछ उलझन तुम्हे न बताऊँ ,
आओगे तो खुश हो जाऊँ,
भइया मेरे , आकर के मान बढ़ाना ।
पिता नही है मइया पड़ी है,
तुमसे ही बस आस लगी है,
भइया मेरे , प्रीति की रीति निभाना ।
जीवन दो दिन का है मेला,
इसमें बहुत बड़ा है झमेला,
भइया मेरे , खुश रह कर मुस्कना ।
भइया मेरे,अबकी राखी में आ जाना। ।
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बहना को कर लेना याद
किसी कारण से आऊँ न जो आज भइया,
अपनी बहना को कर लेना याद भइया ।
जीवन राह में उलझन बहुत है ,
तुमसे ममता की तड़पन बहुत है ,
दूर हूँ पर समझ लेना पास भइया।
एक धागा रेशम का लेना ,
मेरे नाम से उसे बांध भी लेना ,
रखना सारी मिठाई उधार भइया।
इन धागों से जुड़ा प्रेम हमारा ,
सबसे प्यारा है भइया हमारा ,
पर होना न जरा भी उदास भइया ।
ये सब बातें भाभी से कहना ,
अबकी बार नही आयेगी बहना,
नही देना पड़ेगा उपहार भइया ।
तेरी बहन हंस बोली बड़ी है ,
तुम से करती ठिठोली बड़ी है ,
मन में रखना न कोई मलाल भइया।
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जाति धर्म का तोड़ो बंधन
जाति धर्म का तोड़ो बंधन,
हम सब भारत वासी हैं ।
अलग-अलग पहचान है फिर भी,
एक हमारे देश की माटी है।
हम सब मिल जुल कर आपस में,
रहें प्रेम और सौहार्द से।
सोंचो रहने वाले हैं हम सब,
उस भारत देश महान के।
जहां एकता और अखंडता का,
हरदम से लगता नारा है।
वही तिरंगा भारत मां का,
हमें जान से प्यारा है ।
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शिवमय हुआ संसार
जब से सावन की आई बहार ,
प्रकृति ने किया खूब श्रृंगार ,
पार्वती संग हर-हर, बम -बम ,
गूंज रहा है भक्तों के घर द्वार ,
शिवमय हुआ है सारा संसार ।
पूजन अर्चन और जलाभिषेक,
माता गौरा के संग पुत्र गणेश ,
हांथ त्रिशूल गले में विषधर ,
रूप दिगम्बर है प्रभु अपरम्पार ,
शिवमय हुआ है सारा संसार ।
अर्ध चन्द्र मस्तक पर है विराजे ,
सबकी विपदा पल में मिटाते ,
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् पावन,
शीश झुकाकर नमन है बारम्बार।
शिवमय हुआ है सारा संसार।।
8 Comments
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Bahut badhiya
बहुत खूब
सारी रचनाएँ बहुत ही सुंदर एवं अविश्वशनीय
Very good
बहुत ही सुन्दर रचना।
Lovely kavita
Very nice
शानदार