चैप्टर – 2
रूपेश भटनागर के पास मुकुल की तमाम परेशानियों का निदान रहता था। मुकुल रूपेश को वह अपना संकटमोचक मानता था। रूपेश रुपये—पैसे की मदद के अलावा सलाह देकर या संकट से निपटने की राह सुझाकर मुकुल की तकलीफों को कम कर देता था। रूपेश मुकुल की दास्तान सुनने के बाद बोला
रूपेश — भैया! तुम्हारी परेशाानियां समझो मेरी परेशानियां हैं। तुम जो झेल रहे हो उससे मुझे बेहद हमदर्दी है। पर मुकुल दादी के ठाकुरजी के पास अर्जियां भेजने से कुछ हासिल नही होगा। तुम्हें कुछ उपाय करना ही होगा।
मुकुल — बताओ न, रूपेश अपनी आर्थिक परेशानियों को हल करने के लिए मैं क्या उपाय कर सकता हूं?
रूपेश — देखो, मैंने बंगाली बाबा के बारे में सुना है। कहा जाता है कि उनके पास जो भी परेशानहाल व्यक्ति पहुंचता है, बाबाजी उसको निराश नहीं करते। वे नोटों की बारिश करवाने वाले काले जादू के माहिर हैं। हो सकता है कि वे तुम्हारे लिए नोटों की बारिश करवा दें।
मुकुल — हैं, ऐसा होता है क्या? नोटों की बारिश??? क्या काले जादू से ऐसा भी मुमकिन है?
रूपेश — हां, मैंने सुना था कि गुड़गांव वाले अनिल कुमावत के घर पर भी उन्होंने नोटों की बारिश कराई थी। उसे अपनी बेटी के विवाह के लिए चार लाख रुपये चाहिए थे। बस वे बाबा की शरण में गए और बाबा ने उसकी मुश्किलें आसान कर दीं।
रूपेश की ऐसी—ऐसी बातें सुनकर मुकुल का विश्वास पक्का होता जा रहा था कि बाबा बंगाली के पास जाने से ही उसकी समस्याओं का हल हो जाएगा। मुकुल ने उत्सुक होकर पूछा ।
मुकुल — तो फिर कब चलें बाबा बंगाली के पास?
रूपेश — देखो! परसों रविवार हैं। अपनी छुट्टी रहेगी। मैं शाम को ठीक चार बजे तुम्हारे घर आ जाउंगा। फिर हम दोनों चल चलेंगे बाबा बंगाली के दरबार में अर्जी लगाने! मरता क्या नहीं करता! मुकुल ने रूपेश के इस सुझाव पर रजामंदी दे दी।
इस बातचीत के बाद जब मुकुल घर लौटा तो वह बेहद खुश था। वह खोले वाले हनुमानजी के मंदिर में पूरे इक्यावन रुपये का प्रसाद भी चढ़ा आया था। घर वाले भी उसे खुश देखकर बहुत खुश थे। जब बंगाली बाबा और नोटों की बारिश के बारे में मुकुल ने उन्हें बताया। वे भी मुकुल की बातों पर यकीन कर बैठे। उन्हें लगा कि बस वे जल्द ही अमीर बनने वाले हैं।
रविवार को मुकुल और रूपेश तैयार होकर बंगाली बाबा के दरबार में पहुंचे। बंगाली बाबा एक अंधेरी सी कोठरी में बैठे हुए थे। वहां लगी लाइटों की पूरी फोकस बाबा पर ही था। उनके पास दो चेले खड़े थे और आसपास दस—बारह भक्तगण बैठे हुए थे। वे मुकुल और रूपेश को देखकर रौबदार आवाज में बोले
बंगाली बाबा — जय कंकाली माता! बच्चा! सब कष्ट दूर होंगे! माता के दरबार में आए हो, अपनी झोली फैलाओ! जो चाहोगे मिलेगा!
मुकुल को लगा कि बाबा ने उसके मन की बात पढ़ ली है। वह सकुचाते हुए बोला — बाबा! बहुत दिनों से परेशान हूं। जो भी कमाता हूं उससे घर का खर्च नहीं चलता। पूरी फैमिली को पालने में मेरे छक्के छूट रहे हैं। बाबा ऐसा कुछ चमत्कार कर दो कि मेरे घर में नोटों की बारिश हो जाए! मैं आपका अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।
बाबा मुस्कराए और कोमल आवाज में बोले — बेटा! माता कंकाली के आशीर्वाद से सब दुख दूर होंगे। तुम्हें मेरा चेला अखंडानंद सब समझा देगा।
रूपेश भी बाबा की बातें सुनकर जोश में आ गया और जय माता कंकाली! और जय बंगाली बाबा! के जयकारे लगाने लगा। उसकी नारेबाजी से वहां बैठे भक्तजन भी उत्साहित होकर जयकारे लगाने लगे। इसके बाद अखंडानंद रूपेश और मुकुल को एक कोने में ले गया तथा उन्हें बताया कि बाबा नोटों की बारिश के लिए जो अनुष्ठान करेंगे, उस पर 11 हजार रुपये का खर्चा आएगा। खर्चे की बात सुनकर मुकुल एक पल के लिए सकते में आ गया क्योंकि उसकी माली हालत उस समय ऐसी थी कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने! पर कुछ सोचकर बोला
मुकुल — ठीक है! अखंडानंद जी आप अनुष्ठान की तैयारी करो, मैं खर्चे की व्यवस्था करता हूं।
अखंडानंद ने पूछा— तो फिर चार दिन बाद दोपहर में रख लें। रसूलनबाई के आमों के बगीचे में!
मुकुल बगीचे का नाम सुनकर चौंका। वह शहर के बाहर बिलकुल सुनसान इलाके में था। उसने कुछ संकोच के साथ पूछा— तो घर पर नहीं होगी नोटों की बारिश?
क्रमशः (काल्पनिक कहानी)