आखिरी चैप्टर
फिर तय कार्य्क्रम के अनुसार शुभेंदु, शाहनवाज और सुशील अपनी—अपनी फैमिली के साथ होटल प्रिंस के बाहर पहुंच गए।
ये तीनों और उनके परिजन आपस में हाय—हैलो कर ही रहे थे कि एक बिलकुल फटेहाल दिव्यांग भिखारी उनके सामने आकर खड़ा हो गया। वह कातर स्वर में बोला —बाबूजी! दो दिनों से रोटी नहीं खाई है। पांच रुपये दे दो ना?
शुभेंदु ने उस भिखारी को हर संभव तरीके से भगाने की कोशिश की पर वह भी कम नहीं था। दो—चार मिनट के लिए इधर—उधर जाकर बैठ जाता और फिर उनके सामने कटोरे के चिल्लरों को उछालते हुए रिरियाती आवाज में भीख मांगने लगता।
भिखारी का यह रवैया शाहनवाज को पसंद नहीं आ रहा था। वह उसे एक पैसा भी देना नहीं चाहता था। पर उसने सोचा क्यों न इस मौके को दोस्तो पर रौब झाड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाए। अत: कुछ सोचकर वह बोला— बाबा! मेरे पास पांच—पांच सौ के नोट हैं। छुट्टे नहीं हैं। आप आगे चले जाओ!
उधर, सुशील सोच रहा था कि कहां तो हम सब पार्टी करने के मूड में इस होटल तक आए हैं और यह भिखारी रंग में भंग डाल रहा है। अत: वह कुछ रोष भरी आवाज में बोला — तुम्हें सुनाई नहीं देता? जाओ आगे जाकर भीख मांगो। पता नहीं कहां से चले आते हैं? न मौका देखें और न मुहूर्त! बस चले आए कटोरा बजाते हुए!
भिखारी भी इन तीनों दोस्तों की बातचीत और व्यवहार देखकर शायद तंग आ चुका था। अत: वह आक्रोशित होकर बोला— चले आते हैं सूट—बूट पहनकर थ्री स्टार होटल में पार्टी करने! ऐसे तो रईस बनते फिरेंगे पर एक गरीब के लिए जेब से फूटी कौड़ी भी नहीं निकलती! इतनी देर से केवल पांच—पांच रुपये ही मांग रहा हूं पेट की आग बुझाने के लिए। यदि जेब से पांच रुपये भी नही निकलते तो ऐसी रईसी से क्या फायदा? तुम लोगों से बढ़िया मेरी स्थिति है, कम से कम पांच—पांच रुपये के पंद्रह—बीस सिक्के तो हैं मेरे पास!
भिखारी की यह बात तीनों दोस्तों के सीने में तीर की तरह चुभ गई। वे बेहद शर्मिंदा महसूस करने लगे। उन्हें लगा कि उनकी यह रईसी बिलकुल बनावटी है। और बात सच भी थी,
शुभेंदु ने नई कार अपनी कमाई से थोडे ही खरीदी थी। वो तो उसके पिताजी एक महीने पहले दिवंगत हुए थे। अत: उनके बैंक एकाउंट में जमा पांच लाख रुपये बतौर नॉमिनी के शुभेंदु को मिलने से वह यह कार खरीद पाया था।
इसी तरह, शाहनवाज ने किसनपुर गांव में अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर मिली रकम से बाइक खरीदी थी।
और बेचारा सुशील उसने तो जैसे—तैसे कुछ जमा पूंजी और एक प्राइवेट बैंक से बड़ी रकम लोन के रूप में लेकर घर खरीदने का इंतजाम किया था। कुल मिलाकर तीनों उतने अमीर नहीं थे जितना कि वे दिखावा कर रहे थे!
पर अब भिखारी ने जब तंज मार ही दिया तो शुभेंदु कुछ सोचकर नजरें नीचे करते हुए नरम आवाज में बोला— बाबा! हमारे साथ आ जाओ! आज का डिनर हम आपके साथ करेंगे!
इसके बाद तीनों दोस्त उस भिखारी के साथ थ्री स्टार होटल में डिनर करने विद फैमिली पहुंच गए।
(काल्पनिक कहानी)