आखिरी चैप्टर
यह सीन देखकर अजीत और संध्या की स्थिति ऐसी हो गई मानो काटो तो खून ही नहीं निकले। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनके चेहरे पर एक के बाद एक कई तरह की भावनाएं उमड़ पड़ीं।
उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस घटना ने बच्चों के दिमाग पर क्या असर डाला है। उन्हें समझ में आ गया कि आज जो व्यवहार वे दक्षा के साथ कर रहे हैं, अगर उसे नहीं बदला तो श्रेया बाद में इसी का अनुकरण करती दिखेगी। वह भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेगी जैसा कि वे दक्षा के साथ कर रहे हैं। अपना भविष्य देखकर उनकी आंखों में पश्चाताप के आंसू आ गए।
इसके बाद अजीत तपाक से उठे और उन्होंने यह बुदबुदाते हुए श्रेया को अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसे सीने से लगाते हुए बोला — बेटा! मैं बहुत खराब आदमी हूं। मैं अपनी मां की सेवा नहीं कर रहा हूं। उन्होंने मुझ पर अब तब जो ममता का कोष लुटाया है, उसे मैं भुला बैठा हूं! मेरे जैसा दुष्ट शायद ही कोई होगा। यह कभी खयाल नहीं किया कि घुटनों में दर्द के बावजूद मेरी मां कैसे झाड़ू—पोंछा और बरतन मांजने का काम करती होगी। मैंने इस घर की मालकिन को सर्वेन्ट बना दिया है। मुझे माफ कर दो बेटा।
अपने पति को बच्चों के सामने पिघलता देखकर संध्या के मन में भी भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा। वह अपने आंसुओं को पोंछती हुई बोली— बेटा! मुझे इनकी मां में अपनी मां की मूरत देखनी थी। जैसे मैं जब मायके जाती हूं तो अपनी बूढ़ी मां को घर का कामकाज नहीं करने देती, खुद ही आगे बढ़—बढ़कर काम कर देती हूं। वैसा ही बर्ताव मुझे सासू मां के साथ करना चाहिए था। मैं जवान होकर भी इतनी आरामतलब और मतलब परस्त हो जाउंगी, ऐसा मैंने कभी नहीं सोचा था। मैं अपने किए पर बेहद शर्मिंदा हूं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मेरी आंखें खोलने के लिए मैं तुम बच्चों का कैसे शुक्रिया अदा करूं? मैं अपने—आप को बदल लूंगी, बच्चो! भरोसा रखो!
दक्षा तमाम नाटक और उससे संध्या तथा अजीत पर पड़े असर को पूरे ध्यान से देख रही थीं। वे अपने प्रति बच्चों का प्यार देखकर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकीं और बोली — वाह! बच्चों! शाबाश! तुम सबने अच्छा ड्रामा तैयार किया जिसका भरपूर असर अब देखने को मिल रहा है। मैं बेहद खुश हूं कि तुमलोगों ने बातों ही बातों में सबको यह समझा दिया है कि एक दिन बूढ़ा तो सबको होना है। अत: हमें बूढ़े व्यक्तियों के साथ अदब के साथ पेश आना चाहिए और उनकी यथासंभव मदद करनी चाहिए। हां, रही बात घर के काम की तो मैं खुद को एक्टिव रखने के लिए और बुढ़ापे का असर कम करने के लिए मैं ये सब काम करती हूं। इससे घरचालों की मदद भी हो जाती है, और मेरा शरीर भी फिट बना रहता है।
यह सुनकर अजीत बोले — मां, मुझे माफ कर दो! मैं और संध्या अब से आपको घर का काम करने नहीं करेंगे। आप तो बस योगा करो, अपनी बाकी लाइफ एंजॉय करो और हम सब पर अपने आशीर्वाद की बारिश करती रहो। हमें इसके सिवा कुछ नहीं चाहिए।चलो, अब ऐसा करते हैं कि हम इन यादगार पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं।
इसके बाद श्रेया ने फटाफट अपना वेश बदला और दादी, मम्मी के साथ लिपटकर खड़ी हो गई। फिर अजीत ने दक्षा, संध्या और श्रेया को सही ढंग से खड़ा करके उनके मुस्काराते हुए चेहरों को अपने मोबाइल फोन के कैमरे में कैद कर लिया।
फोटो खिंचने के बाद श्रेया और तमाम बच्चे दक्षा के पास आकर उनसे स्नेह से चिपक गए। दक्षा उनके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं— जुग—जुग जियो मेरे बच्चों! अब मैं बिलकुल ठीक हूं। चलो, इसी खुशी में तुम सबको अपने हाथ से पूरण—पोली बनाकर खिलाउंगी!
दक्षा के प्रस्ताव पर मुहर लगाती हुई संध्या बोली— पूरण—पोली मैं बेलूंगी आप तो उन्हें बस सेंक देना!
यह सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
(काल्पनिक कहानी)