चैप्टर-2
इस बीच, सरसराहट और तेज हो गई।
इसके साथ ही उसकी दिल की धड़कनें और शरीर के कंपन में भी तेजी आ गई। उसने सोचा कि अपने डर पर काबू पाने का एक ही उपाय है कि सरसराहट का कारण जाना जाए। अतः वह बिलकुल धीरे से बिस्तर से उठा और छत के एक अंधेरे कोने में जाकर खड़ा हो गया।
उसने वहां से नीचे झांक कर देखा तो लंबी सी इंसानी छायाएं हिलती-डुलती दिखीं। ये छायाएं अपने हाथ उपर-नीचे करके उसके क्वार्टर की ओर इशारे करके आपस में संदेशों का आदान-प्रदान कर रही थीं। उसकी आंखें मन को एकाग्र करके इन्हीं दोनों छायाओं पर केंद्रित होने लगीं। विकास को उनकी गतिविधियां संदेहास्पद लग रही थीं।
कुछ देर के बाद उनमें से एक छाया ने एक छोटा सा पत्थर उठाकर विकास की छत की ओर उछाला। अब उसका शक यकीन में बदल गया कि कुछ अनहोनी होने वाली है। उसके मन में घबराहट होने लगी। तरह-तरह के विचार आने लगे। वह क्या करे क्या नहीं करे, यह उसे समझ में नहीं आ रहा था।
जब पत्थर छत पर गिरा तो हल्की सी आवाज हुई। उसने ईश्वर का नाम लेकर ठंडी आह भरी। अचानक उसका ध्यान बिस्तर के पास लगे खटारा टेबल फैन और टेबल लैंप की तरफ गया। उसके मन में एक आइडिया कौंध गया।
वह दबे पांव विनोद के पास पहुंचा और उन्हें जगाकर जल्दी से वह सबकुछ बता डाला जो उसने अभी-अभी देखा था।
विनोद उसकी बातें सुनकर फुसफुसाते हुए बोला- हे भगवान! अब हम क्या करें? हमारे पास कोई हथियार भी नहीं है जो हम उन चोरों का मुकाबला कर सकें।
विकास ने धीरे से कहा – भैया! मेरा विचार तो यह है कि जब हमारे पास हथियार हैं ही नही तो उनके बारे में सोचने से क्या फायदा? फिलहाल हमारे पास जो कुछ है उसी से काम चलाना होगा। उसी को काम में लाना होगा।
इस बीच, दूसरा पत्थर भी उनकी छत पर गिरा। शायद चोर पत्थर फेंक कर क्वार्टर में रहने वाले लोगों के रिएक्शन का जायजा लेना चाह रहे थे। इस पत्थर की आवाज सुनकर पिताजी की भी नींद खुल गई। वे घबराकर उठे। विकास ने उन्हें एक गिलास पानी दिया और फुसफुसाते हुए कहा – पिताजी! नीचे दो लोग अपने क्वार्टर पर पत्थर फेंक रहे हैं। मुझे उनके इरादे ठीक नहीं लगते। आप ऐसा करें कि जल्दी से सीढियों से निकलकर नीचे पहुंच जाएं और अपने पड़ोसियों सेन अंकल, सिन्हाजी, त्रिपाठी जी आदि को जगाने की कोशिश कीजिए। तब तक हम दोनों भाई इन्हें संभालने की कोशिश करते हैं।
रामनाथ – बेटा! तुम सुरक्षित रहो यह मेरी जिम्मेदारी है। मेरे होते हुए मैं तुम्हें खरोंच तक नहीं आने दूंगा। तुम दोनों क्या करोगे? अगर उनके पास हथियार-वथियार हुए तो मुश्किल हो जाएगी। मैं तुम्हें छोड़कर नीचे नहीं जा सकता।
पिताजी की बातें सुनकर विकास आत्मविश्वास भरे स्वर में बोला – हम दोनों भाई उन्हें संभाल लेंगे। आप तो बस नीचे का मोर्चा संभाल लीजिए!
रामनाथ- देखो बेटा! सावधानी रखना! ऐसा न हो कि तुम्हें कुछ हो जाए।
विकास और विनोद – हम दोनों तैयार हैं पिताजी, उनसे निपटने के लिए। आप बिलकुल भी चिंता मत कीजिए।
इन दोनों की आत्मविश्वास से भरी बातें सुनकर रामनाथ के चेहरे की लकीरें कुछ कम हुईं और वे धीरे से छत का दरवाजा खोलकर नीचे उतर गए।
जैसे ही पिताजी नीचे गए विकास ने अपनी योजना पर अमल शुरू कर दिया।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)