रचनाकार : सुशीला तिवारी, रायबरेली
जब भी खत आता पीहर से
जब भी खत आता पीहर से चूम उसे फिर रोती थी।
बार -बार पढ़ती थी उसको खोने कभी न देती थी।।
मां का प्यार पिता का सम्बल होती थी ये चिट्ठी,
रखकर उसको सिरहाने तकिया खूब भिगोती थी।
मां की बात बड़ी अच्छी भइया बड़ा हो जायेगा,
मन में धीरज रख बेटी कभी तुमको लेने आयेगा,
यही सोंच कर मन ही मन सपने खूब संजोती थी।
बार बार पढ़ती थी उसको खोने कभी न देती थी।।
तब पतझड़ सावन बन जाए
जब तनिक ना उसकी आस रहे,
पर मिलन की मन को प्यास रहे,
दिल के जख्मों का दर्द बढ़े ,
फिर मरहम बन कर आ जाए।
तब पतझड़ सावन बन जाए।।
जब आँखे मग में गड़ी रहें,
उसकी चाहत में लगी रहें,
जब तपती हुई दोपहरी में,
जब धूप छांव सी बन जाये
तब पतझड़ सावन बन जाए।।
जब अंखिया रिमझिम बरस रही,
दर्शन को पिय के तरस रही,
उसके आने की नित राह तके
और अचानक वो आ जाए ,
तब पतझड़ सावन बन जाए।।
तब पतझड़ सावन बन जाए।
मुहब्बत के वो जमाने अब कहाँ
मुहब्बत के वो जमाने अब कहाँ
कहाँ खो गए दीवाने अब कहाँ
रूठ जाने पर मुझको मनाते थे
रूठने के रहे वो बहाने अब कहाँ
सब अपने में मशगूल अब हो गए,
वक्त जायें हम बिताने अब कहाँ ।
रोज गलियों से तेरी गुजरते थे हम,
गीत गाते थे वो तराने अब कहाँ ।
एक झलक मेरी पाने आती थी वो,
खो गए वो पुराने जमाने अब कहाँ।
अब जीवन किस मोड़ पर आ गया,
गुम हो गए वो फसाने अब कहाँ।
आवाज देकर थक गई मैं उन्हे ,
“तिवारी ” जायें बुलाने अब कहाँ ।
दरकते से रिश्ते
बिछड़ने के पल और मिलने के किस्से।
बहुत याद आते वो दरकते से रिश्ते ।।
कभी घाट पनघट पर जाकर मिलना ,
जरा देर तक उनसे बातें भी करना ,
मिलन फिर जुदाई हुई मेरे हिस्से ।
बहुत याद आते वो दरकते से रिश्ते ।।
जुदाई जब उनसे हुई भी तो ऐसी ,
किया कसमें वादों की खूब ऐसी तैसी ,
“तिवारी” गई आस मिलने की उनसे ।
बहुत याद आते वो दरकते से रिश्ते ।।
बीता हुआ कल
अतीत की स्मृतियों में बस गया
वो बीता हुआ कल
कभी दुख की बदली छाई,
कभी मिले खुशियों भरे पल।
यादें अक्सर बोध कराती हैं,
क्या खोया क्या पाया
हांथ मलते रह गये कुछ हांथ न आया
ये जीवन यूँ ही हमने गंवाया।
पर समय के साथ स्मृतियों से बाहर निकलना
वर्तमान के साथ पड़ता है चलना
जिंदगी भर हम कोई न कोई जंग लडते हैं
कभी जीत हासिल कभी हार जाते हैं।
सबकुछ छोड़कर जिंदगी जियो बेफिक्र
समय के सफहों पर भर दें कई रंग
जो पाल रक्खे है स्मृतियों के भ्रम
छोड़कर आगे की तरफ बढ़ चले हम ।
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