चैप्टर-1
शीर्षक देखकर चैंकिए मत! यह पेट वो नहीं है जो आपके सीने से नीचे और पैरों के उपर होता है! यह पेट है बिलकुल जीता-जागता, जान युक्त, शान युक्त पेेट यानी पालतू पशु! मुझे डर है कि उसे पशु कहने से कहीं पशु प्रेमी नाराज ना हो जाएं इसलिए मैं उसे एक प्यारा सा नाम देना चाहूंगी – टिम्बकटू!
अब आप सोचेंगे कि यह टिम्बकटू क्या बला है। तो हुजूर जान लीजिए वह चार पैरों वाला है उसकी एक पूंछ भी है! पर वह कोई बछड़ा या भैंस का पडेरू नहीं है! वह है वफादार, शानदार और हिम्मत से भरपूर हमारा नया पेट जो सचमुच में भौंकता भी है और अपने पीछे के पैर के पैर से कानों को खुजलाता भी है!
यह हमारे घर का नया सदस्य है। करीब एक महीने का ही है! तो इसे लाने का किस्सा बडा ही मजेदार है! दरअसल, हमारी इकलौती बेेटी चंचला मोबाइल फोन से पूरे दिन में 20 घंटे चिपकी रहती थी। इससे उसकी गर्दन में और हाथों में निरंतर दर्द होने लगा था! कई डाॅक्टरों को दिखाया, कई लोगों से मशविरा किया! मालूम चला कि बिटियो को मोबाइलोफोबिया नामक बीमारी हो गई है जो कि आजकल के बच्चों में बड़ी काॅमन है! अब बीमारी हुई है तो इलाज भी ढूंढना ही होगा! नहीं तो बच्ची के लिए स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें बड़ सकती हैं। यह सब सोच-सोचकर हम सब घबरा गए।
अर्जेंट फैमिली मीटिंग बुलाई। बजट पारित किया गया। प्रस्ताव पारित किया गया कि घर में एक पेट आएगा! बस फिर क्या थाध् जैसे ही पेट्स की हाट लगने वाला दिन आया हम पहुंच गए पिल्लू लेने!
हाट में नाना प्रकार के पिल्लू थे – अल्सेसियन, बुलडाॅग, गोल्डन रिट्रीवर, इटालियन, मंगोलियन, काॅमेडियन, ट्रेजेडियन!
शुरू की चार-पांच प्रजातियों के नाम तो आपने शायद सुने होंगे पर आखिरी के दो नाम हमारी ही ईजाद हैं। आप चाहें तो मेरे फेसबुक के फर्जी एकाउंट पर इन नामों के पेटेंट का फर्जी सर्टिफिकेट देख सकते हैं। इसके लिए आपको एक लिंक पर क्लिक करके बस 1000 रुपये मेरे एकाउंट में डलवाने होंगे!् खैर आप अगर ऐसा नहीं करना चाहें तो कोई बात नहीं आप तो बस यकीन कर लीजिए कि मैं जो कह रही हूं सच कह रही हूं।
तो हम पिल्लू खरीदने पहुंचे! हमारे मन में तब वे दृश्य चल रहे थे जब दुष्यन्त ने भरत को शेरों के साथ खेलते देखा था। वैसे हमने इरादा तो शेर पालने का भी किया था पर जब मन में यह खयाल आया कि कहं वह शेर सवा शेर बनकर हमारे लिए और अड़ोसियों-पड़ोसियों के लिए मुसीबत न खड़ी कर दे फिर शेर-वैर पालने पर तो आल इंडिया में बैन है। अतः उस खयाल का हमने खयाली पुलाव पका डाला और मन ही मन उसे खाकर खत्म कर दिया। ऐसे मे नए जमाने के हिसाब से पिल्लू पालना ही ठीक लगा और उसे ससम्मान घर लाने के लिए पहुंच गए पेट्स की हाट में!
हमने पेट्स की दुकान की मालकिन से कहा – हमें कुत्ता चाहिए! बस हमारे मुह से इतने वर्ड निकल ही पाए थे कि शाॅप में मौजूद तमाम डाॅगीज से जोर जोर से भौंक-भाक कर आपत्ति दर्ज करानी शुरू कर दी! मानो हमने उनकी बहुत बड़ी मानहानि कर दी हो!
क्रमशः
(काल्पनिक रचना )