रचनाकार : शिखा तैलंग
बहुत पुराने सिक्कों पर बने अंकनों का साफ दिखना बहुत मुश्किल होता है. फिर भी उन्हें सावधानीपूर्वक और उचित उपाय अपनाकर साफ किया जा सकता है.
इस प्रकार जो लोग इस हॉबी के प्रति रुचि रखते हैं वे कई तरह से लाभान्वित हो सकते हैं. वे सिक्कों के माध्यम से किसी देश के इतिहास, कला-संस्कृति, राजनीति, अर्थव्यवस्था, भाषा आदि के बारे में जान सकते हैं. इसके अलावा उनकी खरीद बिक्री कर अच्छी खासी दौलत हासिल कर सकते हैं. ऐसे में यदि यह कहा जाए कि सिक्का संग्रह एक ऐसी हॉबी है जिसमें सरस्वती यानी ज्ञान के साथ लक्ष्मी यानी दौलत का भी संगम है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
बॉक्स-1: सिक्कों से संबंधित कुछ उपयोगी बेवाइट्स:
hobbyclues.in
www.coinindia.com
dir.indiamart.com
www.indiancurrencies.com
www.collectorscorner.com
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oswal.auction
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बॉक्स-2ः क्या बताते हैं सिक्के?
इतिहास: सिक्कों के प्रचलन अवधि से तत्कालीन शासकों, राजनीतिक व्यवस्था की झलक मिलती है. जैसे: अंग्रेजों के जमाने में अपने देश में प्रचलित रहे सिक्के बताते हैं कि हमारे देश पर पहले ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर ब्रिटिश ताज का शासन रहा. इसी तरह कुषाणों, मुगलों आदि द्वारा चलााए गए सिक्के तत्कालीन शासकों के बारे में अच्छी खासी जानकारी का स्रोत हैं.
कला-संस्कृति: कला-संस्कृति के लिहाज से गुप्त काल में प्रचलित रहे सिक्के बेमिसाल माने जाते हैं. इनमें से कुछ में समुद्रगुप्त (330-380 ई. ) को वीणा बजाते हुए दिखाया गया है. इससे पता लगता है कि समुद्रगुप्त के काल में गायन-वादन को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाता था. इसी तरह जहांगीर (1569-1627 ई.) के काल में प्रचलित रहे राशि चिन्हों वाले सिक्के से साबित होता है तत्कालीन शासक की ज्योतिष विद्या में गहरी रुचि थी.
अर्थव्यवस्था: सामान्यतः सिक्कों की धातु बताती है कि किसी अवधि विशेष की अर्थव्यवस्था कैसी थी. इतिहास में वर्णित गुप्त काल को स्वर्ण युग भी कहा जाता है. उसकी एक वजह यह भी गिनाई जाती है कि गुप्त शासकों के जमाने में व्यापार-वाणिज्य की दशा अच्छी थी और अधिकतर लेनदेन सोने के सिक्कों में होता था. फिर अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे क्षीण होती गई तो सोने के सिक्कों में मिलावट बढ़ती गई.
भाषा: सिक्कों पर अंकित लिपि काल विशेष में प्रचलित रही भाषा का प्रमाणिक ब्यौरा देती है. जैसे: अपने देश में पहली-दूसरी सदी में प्रचलित रहे सिक्के बताते हैं कि तब ब्राह्मी लिपि का चलन था. फिर भारतीय-यूनानी शासकों द्वारा चलाए गए सिक्के बताते हैं कि शासक वर्ग यूनानी भाषा को अहमियत देता था. मुगल काल में प्रचलित सिक्कों में अरबी-फारसी में विभिन्न जानकारियां लिखी जाती थीं.
(समाप्त )