रचनाकार : कमलानाथ , मुंबई
आखिरी चैप्टर
कई बार मैं खीज में हल्का सा विरोध भी करता था – “बाबूजी, जब सर्दी लगेगी तो मैं अपने आप पहन लूँगा, आप क्यों बार बार कहते हैं?” वे बस यही कहते – “बेटा, तुम अभी नहीं समझोगे!”
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सर्दियों की शुरुआत ऐसा वक़्त होता है कि अक्सर बच्चे छी छाँ करने लगते हैं! अज्जू को मैं याद दिलाता रहता हूँ – “बेटा, कुछ गर्म पहन लो”, पर वह या तो चुपचाप खिसक लेता है, या कहता है – “हाँ जी, अभी जाता हूँ!.” मैं समझने लगता हूँ शायद स्वेटर पहनने जा रहा है, पर वह पीठ पर बैकपैक लादे बाहर जाता दिखाई देता है! शरीर पर वही हल्का सा खुला सा कार्डिगन या पतली सी जैकेट!
अब स्वेटर तो कम ही दिखाई देने लगे हैं जो छाती को अच्छी तरह से ढँक कर रख सकते हों! ये आजकल की क्या अजीब फ़ैशन चल पड़ा है कि बच्चे अपने जैकेट तक के बटन खुले ही रखते हैं! हो सकता है बाहर कुछ धूप रहती है, उसकी वजह से सर्दी भी थोड़ी कम महसूस होती होगी. पर घर में धूप उतनी नहीं होती और ठंडक कुछ ज़्यादा ही लगती है, खासकर सुबह और शाम. और यह अज्जू है कि सुबह बिस्तर से यूँ ही निकल आता है बिना कुछ गर्म पहने. फिर ज़ुकाम होगी तो कई दिनों तक वैसे परेशान रहेगा!
उसकी वजह से घर के लोग तंग होंगे सो अलग! सुबह उठते ही तीन चार छींके लेता है तो मैं कहता हूँ – “देखा, लग गई न सर्दी!” वह कहता है- “नहीं पापा, सर्दी नहीं है, पॉल्यूशन के कारण छींकें आई हैं!” शाम को भी घर लौटते ही दो तीन छींकें तो मारेगा ही! मैं कहता हूँ – “तुम्हारे सर्दी के कपड़े निकल गए हैं! अब कुछ गर्म पहन लो.” वह रटा रटाया सा वही वाक्य दोहरा देता है – “हाँ, पापा, पहनता हूँ!.” अगले दिन उसे वैसे ही देखता हूँ तो फिर गर्म पहनने के लिए याद दिलाता हूँ!. ज़्यादा कहने पर कहता है – “पापा, मैं बच्चा थोड़े ही हूँ. सर्दी लगेगी तो मैं पहन लूँगा, आप क्यों चिंता करते हैं?”
अब ये कैसे और कब समझेगा ! मैं बस यही सोचता हूँ. सिर्फ़ मन मसोस कर रह जाता हूँ . मन ही मन कहता हूँ – “बेटे, तुम अभी नहीं समझोगे!”
“गुड मॉर्निंग दद्दू!” अज्जू की बेटी, छोटी यश्वी सुबह उठते ही बड़े प्यार से आकर मेरी गोद में बैठ जाती है और बतियाने लगती है! पीछे से अज्जू की आवाज़ आती है – “पापा, यश्वी ने कुछ गर्म पहना हुआ है कि नहीं ?” शाम को जब यश्वी के स्कूल से लौटने का समय होता है, उससे पहले ही अज्जू का ऑफ़िस से यश्वी की मम्मी के पास फ़ोन आता है – “देखना, कुछ सर्दी सी होने लगी है, यश्वी को आते ही कुछ गर्म पहना देना. ज़ुकाम हो गई तो सब को परेशानी होगी!.” वह कुछ कहती है तो बोलता है – “तुम अभी नहीं समझोगी!“ कभी यश्वी को भी देखता है तो कहता है – “जाओ, मम्मी से कह कर कुछ गर्म पहन आओ!”
अज्जू ने कल ही बाबूजी की पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फ़ोटो को स्कैन किया था! आज उसने कहा – “पापा, मैंने दादाजी की पिक्चर को फ़ोटोशॉप से कलर किया है! देखिये कैसी लग रही है!” मैंने देखा बाबूजी की फ़ोटो अब और भी अच्छी लग रही थी.!उनके ओढ़े उस उस शाल से अज्जू ने तहों के निशान मिटा दिए थे और शाल को एक नया रंग दे दिया था.! उसने अगले दिन फ़्रेम में मँढ़वा कर फ़ोटो दीवार पर टाँग दी थी.!
जब मैंने दुबारा फ़ोटो में झाँका तो अचानक लगा जैसे बाबूजी मुस्कुराते हुए कह रहे थे – “बेटा, कुछ गर्म पहन लो !”
(काल्पनिक कहानी)