आखिरी चैप्टर
सुकृति — कोरोना वगैरह के गए जमाने! अब तो मुझे फिकर इस बात की है कि इस महीने मेरे डिओ का खर्चा कितना आएगा। जब इन महाशय के आने का ऐलान होता है मैं पूरे 100 एमएम का डिओ आसपास छिड़ककर बैठ जाती हूं ताकि नाक में उनकी बदबू कम से कम जाए!
मै — चलो हम लोग इस मामले में सतविंदर की सलाह लेते हैं। वह इंटेलिजेंट तो है ही साथ ही टेक्नीकल मामलों में बॉस को अच्छी सलाह देता रहता है।
फिर हमलोग सतविंदर के पास गए। वह उठापटक कंपनी में टेक्नीकल अस्स्टिेट है। हमने जब अपनी समस्या बताई तो वह बोला — ओय! चिंता न करीं। हुण अब मामला मेरे पास है। मैं कुछ दमाग लगाता हूं। अभी वो आया तो नहीं?
मैं — नहीं!
सतविंदर — ओय फिर तो समझो समसया साल्व हो गई। हम ऐसा करांगे कि उसके कंप्यूटर पर एक सक्रीन सेवर बना देत्ते हैं। उस पर लिखा होगा — आज लाइफबॉय से नहाए क्या? यह हर 10 मिनट बाद सक्रीन पर चमकेगा तो शायद उसदे दमाग दी बत्ती जल पड़े!
यह आसान सा उपाय सुनकर सबकी बांछें खिल गईं और हम सबने सतविंदर को यह काम करने को राजी कर लिया। उसने रंगा साहब के आने से ठीक 15 मिनट पहले नया स्क्रीन सेवर उनके सिस्टम पर डाल दिया। जैसे ही रंगा जी आए उन्होंने सिस्टम का बटन दबाया। आज लाइफबॉय से नहाए क्या? वाला मैसेज उनकी स्क्रीन पर हर 10 मिनट बाद दमक उठता पर हमने यह देखकर माथा ठोक लिया कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और वे अपने काम में पहले जैसे ही मशगूल बने रहे! हमलोग अपनी नाक दबाकर काम करते रहे!
अगले दिन मुझसे रहा नही गया। वे घर पर बिस्तर में ही पड़े—पड़े आफिस जाने के समय होने का इंतजार कर रहे थे। मैंने उन्हें फोन लगाया — रंगा बाबू जी!
उधर से रंगा बोले — हूं हूं!
मैं — रंगा जी, मैं काफी सीरियस हूं! इस समय आप रुदाली मूवी का यह गाना मत गाइए — दिल हूं हूं करे! मन घबराए! अरे! उठिए पानी की कम से कम एकाध बूंद तो अपने पर डालिए! आपको मालूम है आपके आफिस आते ही हमारी नाक में कैसी बदबू घुस जाती है और मन रोने—रोने को हो जाता है?
रगा— अरे! अभी तो मेरी नींद ही नहीं खुली!
मैं — तो खोलिए न!
रंगा — अच्छा! आप कहती हो तो मैं अपनी आंखें खोलता हूं।
मैं — ठीक है! अब अगर आपकी आंखें खुल गई हों तो आफिस के उस समय के सीन को याद कीजिए जब आप आते हैं। क्या कहर बरपता है! मालूम है लोग आपके बदन से आती बदबू से बेहोश से होने लगते हैं।
रंगा — ओह! यह बात है!
मैं — और क्या?
रंगा — मैडम, आप शायद यह नहीं जानतीं कि मै नहाता तो रोज हूं!
मैं — हैं! आप रोज नहाते हैं?
रंगा — मैं रोज शास्त्र सम्मत स्नान करता हूं।
मैं — वह क्या?
रंगा — हमारे शास्त्रों में लोगों के लिए आठ तरह के स्नानों का विधान है। इनमें से एक स्नान है हरि स्नान! अब आपको तो मालूम है कि शहर का टेम्परेचर 10 डिग्री से भी कम चल रहा है। ठंड के दिन हैं। ऐसे में मैंने पढ़ा था कि अगर जल से स्नान की व्यवस्था नहीं हो पाए तो बस भक्त को हरि का नाम ले लेना चाहिए! यह नाम लेना ही गंगा में नहाने के बराबर पुण्य दे जाता है।
मैं उनका यह रहस्य खोलते ही सोच—विचार में पड़ गई। फिर कुछ देर खोपड़ी खुजलाई और कहा — रंगा बाबू! वो सब तो ठीक है! पर साफ—सफाई से हमें रहना ही चाहिए! ठंड में गरम पानी करके तो नहा सकते हो। दरअसल, आप हरि का नाम लेकर अपने आलसी होने की प्रवृत्ति को ढंकना चाहते हो। आप यह तो जानते ही हैं कि हरि यानी भगवान विष्णु सागर में ही रहते हैं। सागर से ही लक्ष्मी जी निकली हैं। जब स्वयं भगवान पानी में ही अपना आवास बना कर रहते हैं तो आप कैसे भक्त हैं जो पानी से कतराते हैं? क्यों उनका नाम लेकर नहाने से बचते हुए लक्ष्मी से बैर कर रहे हैं?
रंगा — ओके मैडम! समझ गया! आज से देखना मैं नहाकर ही आउंगा! आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा कि आज लाइफबॉय से नहाए क्या?
(काल्पनिक रचना)