पंकज शर्मा “तरुण ” , पिपलिया मंडी (म. प्र.)
राधे- राधे बोल
राधे- राधे बोल भाई,राधे राधे बोल।
मन की आंखें खोल भाई,मन की आंखें खोल।।
वृंदावन की कुंज गलीन में,घूम रहे घनश्याम।
गोप गोपियां नाच नाच कर,जपते सारे नाम।।
जप तप कर लो रास रचा कर ,जीवन है अनमोल।
राधे- राधे बोल भाई,राधे राधे बोल।
माखन मिश्री रोज चुराते,सभी बाल गोपाल।
टोली बना बना कर ग्वाले, चले उड़ाने माल।।
गोपी बैठी दरवाजे पर,अपनी आंखें खोल।।
मन मोहन जो आएगा तो, पीटूंगी मैं ढोल।
राधे- राधे बोल भाई,राधे राधे बोल।
मात यशोदा लेकर डंडा, खोज रही हर द्वार।
मुख पर गुस्सा लगता है पर,उमड़े मन में प्यार।।
गोपियों ने नंद घर आकर,खोली जब से पोल।।
राधे- राधे बोल भाई,राधे राधे बोल।
मन की आंखें खोल भाई,मन की आंखें खोल।।
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दोहा छंद
सूरज समीप आ गया,सौंख रहा तन नीर।
यम दूतों के साथ में, चले हजारों वीर।।01
नव यौवन का ताप भी,मुरझाया ज्यों फूल।
वन, विकास के नाम पर,काटे हैं मत भूल।।02
हरियाली होती अगर,क्यों बढ़ता रवि ताप ।
नई नस्ल यह पूछती,कर कर विकट विलाप।।03
गली- गली में कर रहा,गुमे सजन की खोज।
कभी गीत गाता मधुर, भूला सारी मोज।।04
व्यर्थ हुआ मानुष जनम,शेष दरस की आश।
जाने कब संपन्न हो,प्रिय की भली तलाश।।05
कोई तो ऐसा करो,जग में अदभुत शोध।
दया वान है आदमी,हो सबको यह बोध।।06
वसुधा को कहते सभी,रत्नों का भंडार।
खोज तेल की हम करें,रहें नहीं लाचार।।07
श्रद्धा बूढ़ी हो गई, गँवा रही सम्मान।
लगता अपने देश में,बदले सभी विधान।।08
उदर चीर शिशु जन्मते, परखनली वरदान।
एकल अब परिवार हैं,सीखे किससे मान।।09
सड़कों पर करने लगे,खुलकर युवा धमाल।
सीधी सादी राह पकड़,मत कर और सवाल।।10
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गजल
गीत गाता आज मैं गम को भुलाने के लिए।
साज छेडूं कर्ण प्रिय मैं धुन सुनाने के लिए।।
केश का विन्यास मोहक मोहता है जान लो।
छा गई हो लोक में तुम ख्याति पाने के लिए।।
पुष्प जूडे़ पर सजाया आपने जो केसरी।
स्वर्ण आभा दे रहा किसको रिझाने के लिए।।
कल्पना के पार की या स्वप्न की हो सुंदरी।
आ लगो सीने से अब सबको जलाने के लिए।।
रूपसी तुमको कहूं या अप्सरा सीधे कहूं ।
कौन सी कोशिश करूं अपना बनाने के लिए।।
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दोहे तरुण के
सागर जैसे हैं नयन, चंदा जैसा रूप।
स्वभाव गोरी का बना,शीतकाल की धूप।।
पहली ही बरसात में, दरके बड़े पहाड़।
सहन नहीं शायद इसे,नीरद करे दहाड़।।
हुई झमाझम रात को,आंगन में बरसात।
मुरझाए मुखड़े खिले,आई ज्यों बारात।।
पवन वेग से उड़ रही, मिडिया में अफवाह।
स्वार्थ पूर्ति का लक्ष्य है, भूले नैतिक राह।।
सांसों की माला जपो,मन में जिसका वास।
आडंबर को त्याग दो,हो जीवन मधुमास।।
नाले सारे उफनते,सरिता सारी मौन।
अट्टहास सागर करे,मेरी सुनता कौन।।
खतरे में है जिंदगी,उगी जहर की बेल।
सावधान रहना सभी,बिगड़ न जाए खेल।।
श्याम मेघ घनघोर है, करते हैं भयभीत।
नृत्य करे मन मोर तरुण,घर आओ मन मीत।।
बच्चे भूखे नेह के,प्यारे से चितचोर।
माना मस्ती खोर पर,लगे हुई ज्यों भोर।।
झूला सावन में पड़ा, गोरी गाती गीत।
विरह अगन भड़की बड़ी,घर आओ मन मीत।।