मांँ की पीड़ा
इतना बड़ा होकर भी, मुझे बड़ा ,समझ ना पाया तुम कितना दर्दसहा, तुझे जन्म दिया ,
प्यार से पाला बड़ा किया, पेड़ों की डाली की भांँतिझुक-,झुक कर मंद -मंद हवा दिया ,खुद जागा, तुझे सुला दिया ,
जितने में मैं थी उससे ज्यादा बना दिया।
कभी-कभी मन में विचार किया करती हूंँ किआखिर मैंने क्या गुनाह किया,
क्यों मेरे मन की भावनाओं को समझ ना पाया तुम,
जो तूने पीड़ा का सौगात दिया,
जितने में मैं थी उससे ज्यादा सौगात दिया।
माँएँ ,पेड़ों की भांति,हमेशा छाया देती हैं ,
पर बदले में उससे, कुछ नहीं लेती हैं,
जो उनसे बन पड़ता है वह कर देती हैं,
वह सुख-दुख की साथी भी होती है,
लोरी कहानी अच्छी बातें सुनाने की आदी होती हैं ,
वह अपने बच्चों की दादी भी होती हैं,
जितने में मैं थी उससे ज्यादा सौगात दिया।
हर सुख सुविधा से भरा तू,
मांँ के आशीर्वाद से आगे बढ़ा तू,
जितना मैं सोची थी,
उससे बड़ा बना तू,
इतना बड़ा होकर भी,
मुझे बड़ा समझ ना पाया तू
जितने में मैं थी उससे बड़ा बना दिया।
करना माँ का सम्मान,
उससे बढ़ेगा तेरा मान,
माँ की कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है ,
जितने में मैं थी उससे ज्यादा कबूल है।
–सुनीता कुमारी
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साड़ी
साड़ी दुकानदार की है महिमा न्यारी
साडी पहना कर खड़ी किये महिला प्यारी
वो महिला भी खड़ी जोड़ के कर को देख रही
लिखा हुआ उसके ऊपर बिकाऊ साड़ी प्यारी
हमने पूछा उससे कि कितने की है ये साडी
नौकर बोला पीछे से अंदर जा कर देखो साडी
चौक गया सुन कर नौकर की सुन्दर प्यारी बोली
आओ साहेब देखो सुंदर सुंदर नग वाली साडी
देखा हमने ये अजब गज़ब की दुकानदारी
जैसे ही हम घुसे दुकान मे प्रगट हुई महिला प्यारी
होठो पर मधुर मुस्कान लिए करने लगी मीठी बाते
हम भी फसे किस चक्कर मे मति गई आज मेरी मारी
लगी दिखाने वो हमको सिल्क जारजट बंधानी साड़ी
हमको देख मुस्करा रही वो खोल रही साडी पर साडी
हर साडी पर वो कहती जाती कितनी सुंदर साडी प्यारी
हम भी उसकी हसी मे फस गये ले डाली ” उत्तम” साडी
–उत्तम कुमार तिवारी
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हमसफ़र
देखूँ तुझे वो नजर ढूँढ ली है
अंधेरों में हमने सहर ढूँढ ली है
आवाज मेरी ये पहुँचेगी तुम तक
आहों में अपनी असर ढूँढ ली है
मिलते थे जिस जा हम दोनों छुपके
नजरों ने अब वो सजर ढूँढ ली है
चलेगा सदा वो हमारे ही संग में
ऐसा एक वो हमसफर ढूँढ ली है
छुप न सकोगे तुम अब्र है घनेरी
हमने अब ऐसी नज़र ढूँढ ली है
खिड़की से शबनम जो तकता था मुझको
सचमुच में वो आज घर ढूँढ ली है
–शबनम मेहरोत्रा