रचनाकार : मनोज कुमार, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
मन के किवाड़ खोलो
मन के किवाड़ खोलो
देखो मेरे राम को
बैठे हैं ये हृदय में
लेके कई नाम को
सच्ची आशा, लेकर देखो
मिलेंगे वही कुछ खोकर देखो
झांको अन्दर, प्रीत लगाकर
देखो उसे जो निर्धन है सब देकर
अंधेरा वही है, उजाला वही है
जो देता है हर काम को
मन के किवाड़ खोलो
देखो मेरे राम को
बैठे हैं ये हृदय में
लेके कई नाम को
उसे श्रद्धा रखो जीवन में
टाल ही देंगे, दुख जीवन से
वही सत्य है, छू लो उसको
अनमोल है वो पा लो उसको
आश वही है, विश्वास वही है
जो दिया है हरिनाम को
मन के किवाड़ खोलो
देखो मेरे राम को
बैठे हैं ये हृदय में
लेके कई नाम को
मिटती नही है भाग्य की रेखा
जिसने भी मेरे राम को देखा
शबरी ने जो प्रेम पथ पे बिछाया
आए प्रभु तो ह्रदय भर आया
कर्म वही है, अकर्म वही है
वंदन करो सुबह शाम को …
मन के किवाड़ खोलो
देखो मेरे राम को
बैठे हैं ये हृदय में
लेके कई नाम को