रचनाकार : सुशीला तिवारी, पश्चिम गांव, रायबरेली
मकान नहीं अब घर चाहिए
मकान नहीं अब घर चाहिए
सबकी बातों में कुछ असर चाहिए।
सुख दुख में भी सब मिल साथ रहें
किलकारी गूंजे खुशियों की
घास फूस की हो चाहे झोपड़ी
चाह नही है महलों की,
जहां प्रेम बरसता हो हरपल में
ऐसी दीवारो दर चाहिए।
मर्यादित हो घर के लोग सभी
मानवता बनी रहे ।
प्रेम भरा जीवन हो सबका,
नही किसी से ठनी रहे।
नही गिला हो कभी किसी से,
ऐसी सुबह,शाम दोपहर चाहिए।
मकान नही अब घर चाहिए।
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दूर जा चुका था
सुनो !
वो स्वतंत्र विचारों का,
सच सुनना चाहता था
मैं डर के लिबास में लिपटी
वो स्वछंद आकाश था
मैं सीमाओं में बंधी धरा
वो जीवन के कोरे कागज पर
अपने मन की लिखना चाहता था
पर न मेरे पास कागज न स्याही शब्दों की
यकीन लेकर बैठी रही
वक्त की नजाकत में बंध गई
मजबूरियाँ न काटी उसने
मैं जड़ बनी जैसे लकड़ी का गट्ठर
मोह था वो सचमुच मेरे अन्तर्मन का
पर निर्मोही बन गई
एक बार रूका था वो जाते-जाते
मैंने मुड़कर नही देखा
जब देखा
वो दूर जा चुका था
बहुत दूर !
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यादें जिंदगी का खजाना
सच में
यादें ही जिंदगी का खजाना हैं
पर जो समय के साथ खो गई
ढूढें कहाँ उनको
पीछे, छोड़े भी ना हों जो कोई निशाँ
वो लम्हे
यादों में बस गये कुछ इस तरह
जैसे कुछ मचलते से ख्वाब ,
तुम्हारे दूर होने का अहसास
याद बनकर छेड़ जाती हैं
तुम्हारे संग वो रातें, वो खुशनुमा जज़्बात
जो साझा किये थे हमने कभी
क़सम से बहुत याद आते हैं।
दिल धड़का जाते हैं।
वो तेरे आने की प्रतीक्षा
मधुर – मधुर सी आवाज
दरवाज़े पे तेरे हाथों की दस्तक
वो मेरा बढ़कर चूम लेना मस्तक
मुझमें एक पूर्णता का एहसास
जगाती थी।
अब ना कोई आहट, ना कोई दस्तक,
मुझे हर शाम टूटकर रुलाती है।
कहाँ मिले अब तुम्हारा वो काँधा,
सिर रख कर सुकून मिलता था
तेरे सीने का वो विस्तार मुझे,
असीमित आसमान नज़र आता था।
मजबूत भुजाओं का वो सिराहना
बरबस याद आता है।
यही दुआ है तू खुशहाल रहे,
जीवन पथ के मेरे महबूब मेरे साथी।
मैं गुज़ार लूंगी ये जीवन की राहें
तेरी यादों के सहारे।
तू गमगीन ना होना मेरे लिए
तेरी यादें हैं ना मेरे पास ज़िन्दगी का,
खजाना बन गये ।
4 Comments
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Bahut sundar rachna
बहुत सुंदर रचनाएं
Very nice
maja aa gya padh kr