आखिरी चैप्टर
श्रीराम व अन्य के विमान से बाहर आते ही उनकी सोने के थाल में कई दीपक सजाकर आरती उतारी गई।
श्रीराम के अयोध्या आने के बाद कई प्रकार के शुभ संकेत मिले। आकाश में नगाड़े बजने लगे। अयोध्या के तमाम मार्गों पर सुगंधित जल का छिड़काव किया गया। कई चौकों को गजमोतियों से सजाया गया। नगर के घर.द्वार सभी सजे.धजे थे। बंदनवार पताकाओं और ध्वजाओं से सजावट की गई। इसके साथ ही पूरी अयोध्या नगरी दीपों की रोशनी से जगमगाने लगी। घर.घर मंगल गीत गाए गए और भांति.भांति के पकवान पकाए गए। इतने उत्साह और उमंग की पराकाष्ठा पहले कभी देखने में नहीं आई।
प्रभु श्रीराम को देखकर महिलाएं बार.बार निछावर कर रही थीं और उनके दिलं परमानंद व हर्ष से भरे हुए थे। माता कौशल्या अपने पु़त्र को बार.बार निहार रही थीं। श्रीराम ने विमान से बाहर निकलते ही अयोध्या की पावन धरती और गुरु वशिष्ठ को प्रणाम किया। विमान से उतरने के बाद प्रभु श्रीराम ने उसे उसके मूल स्वामी कुबेर के पास भेज दिया।
इसके बाद वे कैकेई सुमित्रा और कौशल्या से मिले।कौशल्या बार-बार सोच रही थीं कि प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण ने रावण को कैसे मारा होगा। ये दोनों ही बेहद सुकुमार हैं जबकि राक्षस तो बड़े भारी योद्धा और महान बलशाली थे।
भरत से प्रभु श्रीराम के मिलने का दृश्य लोगों के दिल को छू गया। भरत श्रीराम को देखने के बाद जमीन पर पड़ गए और उठाए उठ नहीं रहे थे। तब श्रीराम ने उन्हें उठाकर सीने से लगा लिया। उनके शरीर के रोएं खड़े हो गए। आंखों में प्रेम से भरे आंसुओं की बाढ़ आ गई।
फिर श्रीराम हर्षित होकर शत्रुघ्न से गले मिले। शत्रुघ्न के साथ भरत ने भी सीताजी के चरणों में सिर झुकाया। ऐसा करते हुए उन्हें परम सुख मिल रहा था।
श्रीराम ने सभी दोस्तों को बुलाया और सबको सिखाया कि मुनियों की चरण सेवा करो। गुरु वशिष्ठ हमारे कुल के पूज्य हैं। इन्हीं की कृपा से युद्ध में तमाम राक्षस मारे गए।
श्रीराम अपने नगरवासियो की बैचेनी और आतुरता को समझ गए थे। हर कोई उनसे सबसे पहले मिलना चाह रहा था। अतः उन्होंने एक चमत्कार किया। उसी समय श्रीराम अनेक रूपों में प्रकट हो गए और सबसे यथायोग्य मिलने लगे।
श्री रघुवीर की कृपा दृष्टि पाकर सभी नर-नारी शोक रहित हो गए। वे सबसे एक क्षण में ही मिल लिए। ऐसा उन्होंने कैसे किया इस बारे में लोग अटकलें ही लगाते रहे। सीताजी अपनी सासुओं से मिलीं और उनके चरण उन्होंने छुए। सासुओं ने कुशल पूछकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनका सुहाग अचल रहे।
आखिर में भरत ने श्री राम को अयोध्या का राज्य लौटाया और उनका राज्याभिषेक किया गया।