सुनीता मिश्रा, देहरादून
कई महीने बीत गए बातों का सिलसिला खत्म हो गया था। गौरव जी के तरफ से ना कभी फोन आया ना ही कभी कोई मैसेज ।
रचना के लिए दूसरा लड़का देखा जाने लगा और उसकी चर्चा होने लगी। तस्वीरों का आदान-प्रदान होने लगा। रचना को दूसरे लड़के की तस्वीर दिखाई जाती किंतु कभी भी रचना ने आंख उठाकर दूसरे लड़के की तस्वीर नहीं देखी थी। हृदय में जब एक तस्वीर बैठ जाए फिर उसको निकालना बेहद मुश्किल होता हैं।
धीरे-धीरे रचना अस्वस्थ रहनें लगी खान-पान तो उसने लगभग पहले ही त्याग दिया था अब अपना ध्यान रखना भी उसने छोड़ दिया था।
उसके चेहरे का नूर गायब हो गया था और चेहरा सुख कर मुरझाए हुए गुलाब की तरह दिखने लगा था। आंखें हमेशा उदास रहने लगी थीं।
आज फिर रचना उदास चुपचाप बैठी हुई थी। गौरव जी के साथ हुई बातचीत को याद कर रही थी, तभी उसे याद आया की बातचीत में कई दफा गौरव जी ने रचना को आगे की पढ़ाई पूरी करने की बात की थी और रचना ने हमेशा ही इस बात को टाल दिया था।
अचानक वह उठी और भाग कर तैयार होने लगी रचना की मम्मी ने पूछा कहीं जाने की तैयारी हो रही है बेटा?
हां मम्मी! मैं आगे पढ़ाई करना चाहती हूं इसलिए एडमिशन की प्रक्रिया के लिए कॉलेज जा रही हूॅं। और रचना तेजी से अपना पर्स लेकर कॉलेज के लिए निकल गई।
पिता के मृत्यु के बाद रचना के दादा-दादी ने रचना के पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठा लिये थें। वह अपने दादा-दादी की आंखों का तारा थी।
जल्द ही रचना ने एडमिशन ले लिया । कॉलेज घर से ज्यादा दूर नहीं होने के कारण वह पैदल चलकर प्रतिदिन कॉलेज जाया करती थी।
सड़क के उल्टा साइड से चल रही रचना को आज एक बाइक सवार ने टक्कर मार दी। रचना लड़खड़ाते हुए पास में पड़े रेत के ढेर पर जा गिरी।
तभी बाइक सवार उतरकर माफी मांगते हुए रचना की तरफ हाथ बढ़ा दिया।
यह क्या बदतमीजी है? एक तो टक्कर मारते और हाथ भी बढ़ाते हो!!?
रचना ने चिल्लाते हुए कहा।
क्रमश:
Kya Gaurav ji wapas aenge?