सुनीता मिश्रा, देहरादून
शादी का डेट फिक्स नहीं हो पाया था। कारण परिवार में एक बुजुर्ग का देहांत हो जाना था। इस बीच दो युवा हृदय एक दूसरे के सपनों में सदैव धड़कते रहते था।
शादी में दीऐ जाने वाले दहेज दोनों पक्षों ने मिलकर फिक्स कर लिया था।
रचना, के घर में शादी का समान खरीद कर आने शुरू हो गए थे।
किंतु तभी लड़के वालों के तरफ से फोन आया कि गाड़ी हमें बाद में नहीं शादी में ही चाहिए।
परिवार के सभी सदस्यों के हाथ पांव फूलने लगे थे! एक तो बड़ी मुश्किल से सबने मिलकर रचना की शादी के पैसे जोड़े थें;
ऊपर से फिर फोर व्हीलर की फरमाइश ने सबको परेशान करके रख दिया था। फिर दोनों तरफ से लोगों का आना-जाना समझना और समझना शुरू हुआ , किंतु गौरव जी के पिता टस से मस नहीं हुए। आखिरकार शादी नहीं करने का दोनों परिवारों ने विचार कर लिया।
रचना आश्चर्यचकित सब कुछ देख रही थी। उसे अपने भाग्य पर तो पहले ही विश्वास नहीं था किंतु जब से गौरव जी से बातें शुरू हुई थी उसे लगा था शायद ईश्वर! ने उसके भाग्य में भी थोड़ा सौभाग्य जोड़ दिया हैं।
किंतु अब वह निःशब्द भावहीन हो अपने तकदीर को निहारे जा रही थी।
आखिरकार उसने गौरव जी को सारी बातों से अवगत कराया। किंतु गौरव जी के तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई।
“उन्होंने सिर्फ इतना बोला, मेरे ख्याल से बड़ों के बीच में हमें नहीं बोलना चाहिए वह जो सोच रहे हैं वह उनका अधिकार है।”
इसके बाद कहने सुनने के लिए कुछ भी बचा नहीं था ।
रचना ने हृदय पर पत्थर रखकर चुप्पी साध लिया ।
दोनों तरफ से बातों का आदान-प्रदान बंद हो गया।
रचना के जीवन में गौरव जी प्रथम पुरुष थें। जिन्होंने उसके हृदय के अछूते पल को छू लिया था। और उसमें अपनी तस्वीर स्थापित कर दी थी।
रचना को अब भूख नहीं लगती; दिन के किसी एक पल कभी घर वालों के बहुत गुस्सा करने पर थोड़ा बहुत खा लेती; वरना ऐसे ही चुपचाप बैठे रहती। उसकी सुनी आंखें सदैव मोबाइल को देखा करती थीं।
कई महीने बीत गए बातों का सिलसिला खत्म हो गया था। गौरव जी के तरफ से ना कभी फोन आया ना ही कभी कोई मैसेज ।
क्रमश:
पूरे होते सपने में एक अच्छा ट्विस्ट डाला है अपने। सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर गौरव जी अच्छे है भी या नहीं।