सुनीता मिश्रा, देहरादून
यह क्या बदतमीजी है? एक तो टक्कर मारते और हाथ भी बढ़ाते हो!!?
रचना ने चिल्लाते हुए कहा।
क्षमा कीजिए मैडम! आप उल्टा साइड चल रही थी, और मैंने टक्कर नहीं मारा मेरी बाइक इस रेत के कारण फिसल गई। फिर भी मैं क्षमा चाहता हूॅं। बाइक सवार ने इसके साथ ही रचना के दोनों हाथों को पकड़कर उठाते हुए बोला।
फिर दोनों की नजरे टकड़ाई और दोनों आश्चर्यचकित हो एक दूसरे को देखते रह गए। “एक दूसरे को देखने वाली दो जोड़ी आंखें गौरव जी और रचना की थी।”
अचानक रचना सतर्क होते हुए और अनजान बनते हुए वहां से जाने लगी, तब तक उसके नयनों में आंसुओं का सैलाब उमर पाड़ा था।
उसको छुपाने की कोशिश करते हुए वह सड़क पर तेज गति से चलने लगी।
तभी गौरव जी ने उसके सामने आकर उसका एक हाथ पकड़ते हुए बोले।
“चलो यहां बैठकर चाय पीते हैं।”
रचना – नहीं इसकी जरूरत नहीं है।
गौरव जी- बस 10 मिनट के लिए।
रचना आगे कुछ नहीं बोल पाई । वह सामने चाय के छोटे से दुकान में जाकर गौरव जी के साथ बैठ गई।
और फिर से बातों का सिलसिला शुरू हुआ। गिले- शिकवे आखिर जब खत्म हो गए तब गौरव जी ने बताया, उनका ट्रांसफर साउथ के एक छोटे से शहर में हो गया है।
कई महीने बहुत परेशानी झेलनी पड़ी। इसी बीच मोबाइल गुम हो जाने के कारण तुम्हारा नंबर भी गुम हो गया था।
मैंने घर वालों से नंबर मांगा था किंतु सबने यह बोलकर की शादी कैंसिल हो गई नंबर नहीं दिया था।
फिर मैं किसी तरह वहां सेटल होने के बाद मुश्किल से छुट्टी लेकर आया हूॅं। रचना की आंखों से ना चाहते हुए भी गंगा जमुना की धार बह चली थी। और गौरव जी खुद को इन अश्रु का कारण मानकर प्रायश्चित के समंदर में गोते लगा रहे थें।
विवाह का दिन फिक्स हो गया है गौरव जी ने अपने पिता को एक गाड़ी खरीद कर दे दिया है, शादी की तैयारी हंसी-खुशी चल रही है।
कल रचना और गौरव जी की शादी हैं। तभी गौरव जी का फोन आता हैं।
गौरव- अच्छा एक बात बताओ; तुमने एडमिशन पढ़ाई करने के लिए लिया था या गम भुलाने के लिए।
रचना – सच बोलूं तो गम भुलाने के लिए ही लिया था किंतु अब कोर्स पूरी करनी है।
गौरव – अब समझ में आया जो होता है अच्छा के लिए होता है।
अगर हमारी शादी कैंसिल नहीं हुई होती , तो तुम आगे की पढ़ाई के बारे में कभी नहीं सोचती। जो शादी से भी ज्यादा जरूरी है।
रचना – हां यह बात तो सच है!
देर रात तक दोनों की बातें होती रही, दो हृदय में एक ही जैसा इंद्रधनुषी उमंग हिलोरें मारने लगा था।
और आज रचना दुल्हन के रूप में सजी-धजी हुई अपने भाग्य को सौभाग्य में बदलती हुई देख रही है।
” आज रचना ने एक बार फिर से ईश्वर का आभार व्यक्त किया!”
आज उसके पास गौरव जैसे जीवन साथी के साथ ही उसकी अधूरी शिक्षा भी पूरी हो रही है।
ईश्वर! हर एक इंसान के साथ सदैव न्याय करते हैं। सबके भाग्य को सौभाग्य में बदलने का कभी ना कभी एक मौका जरूर देते हैं।
(काल्पनिक रचना)
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