रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
लाख नहा लो गंगाजल में आज
न आडंबर सकल बचा पाएगा
न ही ये गंगा जल बचा पाएगा
लाख नहा लो गंगाजल में आज
नही न ये कल बचा पाएगा
गंगाजल तो काया घोती
पाप नहीं धो पाएगी
अच्छे बुरे जो कर्म किए है
लेख में लिखा जाएगा
नही कोई पहल बचा पाएगा
नही न ये कल बचा पाएगा
चंदन लेपो तिलक लगाओ
दुष्कर्मों को जितना छुपाओ
चित्रगुप्त का खुलेगा खाता
बोलो कैसे तुम बच पाओ
करके नकल बचा पाएगा
नही न ये कल बचा पाएगा
बुरे कर्म से तुम नाता तोड़ो
गंदी राह को जल्दी छोड़ो
सचमुच मुक्ति चाह रहे हो
हरि चरण से नाता जोड़ो
राह ये सरल बचा पाएगा
नही न ये कल बचा पाएगा
न आडंबर सकल बचा पाएगा
न ही ये गंगा जल बचा पाएगा
बजरंग बली के चरणों में
हृदय मोम का देह वज्र का तेज सूर्य का भान जी,
राम काज को तत्पर रहते महावीर हनुमान जी ।
बूटी संजीवनी लाना हो या लाना हो सीता सन्देश ,
अचल और सागर लांघ के पहुँचे वे रावण के देश ।
सब से पहले लिया उन्होंने सीता का सन्धान जी ,
राम काज को तत्पर रहते महावीर हनुमान जी,,,
बाग उजाड़े लंका जा कर कर अक्षय का काम तमाम ,
लगा के अग्नि मचा दिया था सारे नगर में त्राहिमाम ।
राम चन्द्रजी इनका करते अपने मुख गुणगान जी ,
ताम काज को तत्पर रहते महावीर हनुमान जी ।
कहा राम ने हनुमानजी तुम बिन मेरा काम न होगा ,
कथा अधू री होगी मेरी जब तक तेरा नाम न होगा ।
“शबनम”इनको गले लगाते स्वयं से ही भगवान जी ,
राम काज को तत्पर रहते महावीर हनुमान जी ।।
रखो ऐसी कृपा ईश्वर
इतनी कृपा ईश्वर करना , इतना देना ज्ञान
अंतिम क्षण मेरा ; तुझ पर बना रहे बस ध्यान
अच्छा किसी का कर न पाऊँ
बुरा करूँ तो रोकना तुम
भक्ति मार्ग से भटक भी जाऊँ
उसी घड़ी ही टोकना तुम
तब पाऊँगी तेरे दर्शन , इतना तो है अनुमान
अंतिम क्षण मेरा तुझ पर ,बना रहे बस ध्यान
तेरे आगे क्या मैं बोलूँ तुम
हो अंतर्यामी
छोड़ तुम्हारे कोई न बुझे
इस जग के स्वामी
निश्चित तेरे द्वार से प्रभु ,जो होगा मेरा कल्याण
अंतिम क्षण मेरा तुझ पर ,बना रहे बस ध्यान
हंसी उड़ाते है जगवाले देख
कर मेरा हाल
उनकी नजर में मेरी हैसियत
जैसे एक कंगाल
मुझे पता है शबनम , उनकी दृष्टि में सब समान
अंतिम क्षण मेरा तुझ पर , बना रहे बस ध्यान
उर आनंद है मेरो बिहारी
मुस्काए पालने में राजदुलारा
जग का पालनहारा नंद दुलारा
केश घुंघराले नटखट नैनों वाला
मुँह में ब्रह्माण्ड काली कमली वाला
ढोल नगाड़े बाजे गोकुल मतवाला
कारी कारी तिरछी चितवन वाला
नील बदन नटवर नागर नटखट नंदलाला
तमस जीवन का हरता पालनहार कहाता
सृष्टि के कण कण में समाया दामोदरा
हाथ सर पे मेरे, हे बॉंके बिहारी लाला
उर आनंद है मेरो बिहारी मुरली वाला
बृंदावन में रास रचाया ब्रज का नंदलाला
रस की धार अनंत बहती थी
रस की धार अनंत बहती थी
अंजुरी भर भर पीया हैं हमने
प्रेम प्रकाश के छाँव तले
जीवन मधुर जीया हमने
जीवन की अब साँझ हो गई
अब सोने की बारी है
कोई द्वार पर दस्तक देता
आँख भी उसकी भरी है
अपनापन और अधिकार से
घर में आन समाया है
मेरी आँख की बहती धारा
देख के वह भी रोया है
मधुर स्मृतियों मे खोई थी
वह यथार्थ दिखता है
बार बार अपने शब्दों से
वह मुझको समझता है
लगता है मैं भूल भी जाऊँ
पर अतीत तड़पाता है
वर्तमान में जीने को
वो मुझको उसकाता है
जब तक मौत नहीं आती है
यह जीवन तो जीना है
क्यों न दरिया पार करे हम
उसके हाथ सफ़ीना है
अब स्मृतियों संग मरना है
शबनम अब संग जीना है ।
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