अचानक बंगाली बाबा उठ खड़े हुए और जोर से बोले — जय कंकाली माता! नोटों की बारिश हो।
उनके ऐसा कहते ही कुछ दो सौ के ओर कुछ पांच सौ के नोट आम के पेड़ से टूटे हुए पत्तों की तरह गिरने लगे। बाबा बोले।
बंगाली बाबा — बटोरो बेटा! बटोरो जितना हो सके नोट बटोरो। मां कंकाली तुम पर मेहरबान हैं।
रूपेश और मुकुल हैरान से होकर नोट बटोरने में जुट गए। थोड़ी ही देर में कुल मिलाकर उनके पास करीब चार हजार रुपये इकट्ठे हो गए।
मुकुल ने आश्चर्य के साथ बोला— बाबा! बस इतने ही?
बाबा जोर से बोले — धीरज रखो बच्चा! अभी और नोट बरसेंगे।
इसके बाद वे और जोर—शोर के साथ मंत्रपाठ करने लगे। मुकुल और रूपेश अपनी—अपनी जगह पर हाथ जोड़कर बैठ गए।
तभी बाबा की यज्ञवेदी में अचानक सामने की ओर से एक आम आकर गिरा। बाबा हैरान थे कि यह आम कहां से आया? बाबा ने अखंडानंद को डपट कर कहा — पता लगाओ यह आम कहां से टपका? लगता है कोई दुष्ट आत्मा हमारे अनुष्ठान में बाधा डाल रही है।
बाबा का आदेश सुनकर अखंडानंद चौकस होकर इधर—उधर देखने लगा। मुकुल और रूपेश भी माजरा जानने के लिए बैचेन हो उठे। उन्होने आंखें मल—मल कर देखा तो पाया कि सामने वाले पेड़ से रस्तोगी उतरकर नीचे आ रहा है। उसके हाथ में एक और आम है और उसे वह जिस पेड़ के तले अनुष्ठान चल रहा था उसी तरफ फेंकने वाला है। यह दृश्य देखकर मुकुल को लगा कि उसके सारे अरमानों पर सैकड़ों घड़े पानी फिर गया हो।
मुकुल ने जोर से पूछा — रस्तोगी यह क्या कर रहे हो?
रस्तोगी ने भी उतनी ही जोरदार आवाज में जवाब दिया — बाबा के कारनामे का पर्दाफाश!
उसकी बात सुनकर बाबा, रूपेश, मुकुल व अखंडानंद हैरान हो गए। बाबा को भी लगा कि उसका खेल खत्म हो गया है तो वह अपना ताम—झाम समेटकर भागने की तैयारी करने लगा। तभी वहां मौजूद लोगों ने बाबा के अनुष्ठान वाले पेड़ के उपर से किसी के उतरने की सरसराहट सुनी।
रस्तोगी उस तरफ अपने हाथ में रखे आम को उछालकर बोला— मुकुल,रूपेश पकड़ो! बाबा के पेड़ के उपर बैठे चेले को उसके भागने से पहले पकड़ो!
भागने से पहले बाबा मसान की हड्डी रस्तोगी की तरफ तानकर बोला — भस्म कर दूंगा। मेरे अनुष्ठान में बाधा डालने वाले को भस्म कर दूंगा।
पर रस्तोगी पर उसकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। वह गरजदार आवाज में बोला— बाबा! पहले खुद को और अपने चेलों को बचा लो।
इसके बाद मुकुल, रूपेश और रस्तोगी ने घेरा बनाकर बाबा और उसके दोनों चेलों को दबोच लिया। बाबा और उसके चेले उनकी जकड़ से छूटने के लिए बहुत छटपटाए पर उनकी दाल नहीं गली। जब स्थिति काबू में आ गई तो रस्तोगी बोला ।
रस्तोगी — मुझे सेठ से मुलाकात के समय से ही मुकुल पर शक हो रहा था। मैंने थोड़ी छानबीन की तो बंगाली बाबा और नोटों की बारिश के चक्कर की जानकारी मिली। इसके बाद से मैं इस बाग पर छिपकर नजर रखने लगा। आज सुबह जब बाबा का एक चेला आकर आम के पेड़ पर छिपकर बैठ गया तो मुझे सारा माजरा समझ में आ गया। दरअसल, बाबा और उसके चेले अनुष्ठान के नाम पर मुकुल और रूपेश की आंखों में धुआं भर कर और उनकी बुद्धि को जकड़कर अपना खेल खेल रहे थे। जब यज्ञवेदी से खूब धुआं निकलने लगता तो बाबा खड़े होकर पेड़ पर बैठे अपने चेले को इशारा कर देते थे और इशारा पाकर चेला उपर से आठ—दस नोट टपका देता था। यजमान को भ्रम हो जाता था कि बाबा नोटों की बारिश करा रहे हैं जबकि असली कर्ता—धर्ता तो बाबा का दूसरा चेला नित्यानंद होता था। वही पेड़ के उपर से नोट गिराता रहता था!
वाह! साब! वाह!! क्या दिमाग लगाया है! बाबा की पूरी पोल—पट्टी खोल दी! मुकुल और रूपेश विस्मित होकर बोले। फिर उन्होंने पूछा — आपको यह सब कैसे समझ में आया।
उनके सवाल पर रस्तोगी मुस्कराकर बोला — भाई! मैं सुबह से ही सामने के पेड़ पर बैठकर बाबा और उसके चेलों की हरकतों पर नजर रख रहा था। मैंने अपने खुफिया कैमरे से इनकी हरकतों की रिकार्डिंग भी कर ली है। अब बाबा अपने चेलों के साथ जेल में चक्की पीसेंगे।
मुकुल चिंतित स्वर में बोला — वो तो ठीक है! पत्रकार साहब! पर मेरी आर्थिक समस्याओं का क्या होगा? मैं कैसे और नोट कमा पाऊंगा ताकि अपने परिवार को अच्छे से पाल सकूं?
रस्तोगी — भइया! अतिरिक्त कमाई करके। यदि तुम चाहो तो तुम्हारी पत्नी घर के सामने ही सब्जी या समौसे का ठेला लगा लेगी। ये कम खर्च में शुरू होने वाले धंधे हैं। तुम चाहो तो मैं भी कुछ मदद कर दूंगा। एक से भले दो। अगर घर में घर की लक्ष्मी ही लक्ष्मी लाने का जरिया बन जाए तो इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता। फिर तुम्हें कभी भी नोटों की बारिश कराने के लिए किसी बाबा का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।
रस्तोगी का यह सुझाव सुनकर मुकुल और रूपेश का चेहरा खिल उठा। वे बोले — धन्यवाद रस्तोगी जी! आपने हमारी आंखें खोल दीं। आपको तो नोटों की बारिश पर एक बढ़िया खबर मिल गई है और हमें तंगहाली से बाहर निकलने का रास्ता!
(काल्पनिक कहानी )