रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
दुर्गा प्रश्नोत्तरी
मात भवानी आज ये “शबनम” लिखती है नव गान ,
भक्तों के कुछ प्रश्न हैं जिनके करती समाधान ।
लोग पूछते हैं माँ दुर्गा ,कित आती है कित जाती ?
महिषा सुर के पिता और चाचा का भी नाम बताती ।
माँ दुर्गा के हाथ में फरसा, किसने किया प्रदान ?
माता को पग के नूपुर , दिया जो उसका है अनुमान ?
मणि द्वीप को माँ जाती है ,पुनः लौट कर आती ,
जिसने जैसा कर्म किया है ,फल वो बांट कर जाती ।
महिषा सुर का रम्भ पिता था ,कम्भ था उसका चाचा ,
विश्वकर्मा ने फरसा , नूपर को त्वष्टा ने था बाटा ।
बहुत न्यून है प्रश्न का उत्तर पढ़ कर इसको जानो ,
धर्म ग्रंथों के अध्ययन से आप भी ये पहचानो ।
बहुत नही हूँ विदुषी ,मुझको आप न समझो ज्ञानी ,
ये संस्कार है मेरे घर का , जहाँ से मैंने जानी ।
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देवी दुर्गा के नौ नाम का वर्णन
पापियों से तारने ये संसार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
बेटी जो मैया बन के हिमालय की तू आई
तुम शैल पुत्री इसलिए धरती पे कहाई
सुनती हो झट भक्तों की पुकार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ,,,, ,,
फिर ब्रह्मचारिणी का तेरा रूप निराला
माँ चंद्रघंटा रूप तेरा दिव्य है आला
भव से करती नैया सबकी पार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा मॉं ,,,,,
कुष्मांडा के रूप में ब्रह्मांड बनाई
संक्धमाता कार्तिकेय नाम से पाई
इस रूप में तू मोक्ष का आधार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
कात्यायनी,कालरात्रि भी है तेरा नाम
माता महागौरी सिद्धिदात्री प्रणाम
शबनम को नहीं देना विसार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
पापियों से तारने ये संसार दुर्गा माँ
ले लिया नौ रूप में अवतार दुर्गा माँ
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शक्ति की अवतार
मंगल करनी ,महिषासुर मर्दनी शक्ति की अवतार ।
एक तुम्हीं कर सकती माता जग का बेड़ा पार ।
हँसते है मुझ पर जगवाले करते हैं परिहास
द्वार तिहारी आई माते लेकर मन में आस
अरज हमारी जग कल्याणी कर लो स्वीकार ,,
एक तू ही कर सकती माता जग का बेड़ापार
यश,धन,बल,बुद्धि की देवी तू कल्याणी माँ
पल में रंक धनी बन जाये है जग तारिणी माँ
देख रहा है आस लगाए,तुमको यह संसार ,
एक तुम्हीं कर सकती माता जग का बेड़ापार
ना सोना ना चांदी माँगूँ ना हीरे ना मोती
बस थोड़ी सी यश,कीर्ति दे कविता जो पिरोती
दया दृष्टि शबनम पर करना जाने जो संसार
एक तुम्हीं कर सकती माता जग का बेड़पार
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शक्ति स्वरूपा मॉं दुर्गा
ऋषि मुनि पंडित ज्ञानी न कर पाए अनुसंधान
मैं मूरख क्या कर सकती हूँ दुर्गा का गुणगान
ओ इस जग की जननी है लिखती सब की लेखा
उनको मूर्ति तस्वीरों में छोड़ के किसने ही देखा
उनकी कृति का लेखा जोखा कहता वेद पुराण
मैं मूरख क्या कर सकती हूँ दुर्गा का गुणगान
राजा सूरत और वैश्य समाधि ने मॉं से सब पाया
इधर दुष्ट पापी महिषा ने कैसे मॉं से प्राण गंवाया
उन्हें मनाने में कुछ लिखूं पंक्ति इतना नही है ज्ञान
मैं मूरख क्या कर सकती हूँ मॉं दुर्गा का गुणगान
काली दुर्गा सरस्वती मां पार्वती एक रूप
आवश्यकता जैसी हो उसने ली है स्वरूप
शबनम की विनती है माते दूर करो दुख त्रान
मैं मूरख क्या कर सकती हूँ दुर्गा का गुणगान!
3 Comments
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A very simple yet enlightening essay to promote sanatani concept. Welcome effort. Than You for sharing it. God Bless 🙏🏾
A very simple yet enlightening essay to promote sanatani concept. Welcome effort. Thank You for sharing it. God Bless 🙏🏾
Jai Durga Mata ki !
Bahot sundar evam prernadayak.
Aap sadav humpe apni kripa rakhen are jeevan mein marg darshan karen.!