चैप्टर-2
राधा समझ नहीं पा रही थी कि आशा के जन्म में उसका क्या कुसूर था?
हालांकि जब आशा पैदा हुई थी तो आनंद का उतरा चेहरा देकर डाॅ कीर्ति राघवन से उसे काफी समझाया था कि लड़की के पैदा होने में औरत का कोई हाथ नहीं होता पर आनंद के गले से नीचे शायद उनकी कोई बात नहीं उतरी थी।
वह इन्हीं सब विचारों में खोई हुई थी कि आनंद के द्वारा उसे आवाज लगाने से उसकी तंद्रा भंग हुई। आनंद को आफिस जाने से पहले नहाना था और वह चाह रहा था कि राधा उसके लिए एक बाल्टी पानी गरम करके दे दे। राधा ने पहले तो आनंद की पुकार को अनसुना किया पर उसे लगा कि हर बार की तरह इस बार भी सुबह-सुबह कोई झगड़ा न खड़ा हो जाए अतः उसने बिना कुछ बोले, कमर दर्द को सहते हुए, एक बाल्टी पानी गरम करने रख दिया।
फिर अनमने ढंग से आनंद के नाश्ता और लंच का इंतजाम किया। अपने लिए और बच्ची के लिए सात-आठ रोटियां बेलीं। जब आनंद के आफिस रवाना होने के बाद उसे इन सबसे फुर्सत मिली तो किचन की सिंक में इकट्ठे हो गए ढेरों बर्तन मांजने बैठ गई। इस सारी कवायद के बीच वह कमर दर्द को झेलती हुई अपनी घरेलू ड्यूटी पूरी करती रही। इस बीच, छोटी-सी आशा धमाचैकड़ी करती हुई पूरे घर में फुदकती रही। उसकी प्यारी-प्यारी हरकतें देखकर वह कुछ पल अपने दर्द को भूलकर फिर काम में जुट जाती।
शाम को फिर नया तमाशा हुआ। आनंद आफिस से थका-मांदा आया और आते ही आर्डर झाड़ दिया – चाय बना दो! बस फिर क्या था राधा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वह तीखे स्वर में बोली – आनंद बाबू आप नाम के ही आनंद हैं। दरअसल, आपने केवल दूसरों को दुख देना ही सीखा है! जाओ, अपनी चाय खुद बनाओ! आफिस से आते ही न बीवी का हाल पूछो, न बच्चे का! बस, नादिरशाह की तरह मासूमों के कत्लेआम का आदेश जारी कर दिया – चाय बना दो! अरे! कभी मेरी तरह कमर दर्द से बेहाल रहते हुए तमाम काम-काज निपटा कर बताओ, तब मैं जानूंगी कि आनंद का सीना इंसानी है या नहीं?
आनंद को यह बयानबाजी बिलकुल भी नहीं सुहाई। उसे यह लगा कि उसकी पत्नी उसकी तौहीन कर रही है, उसे राधा के बेअदबी से कहे गए इन वाक्यों ने तन-मन में मानो सैकड़ों नश्तर चुभो दिए। वह भी राधा से इतनी तीखी आवाज में बोला – भाड़ में जाओ! मैं बाहर चाय पी आउंगा! अपने पापा के ऐसे तीखे तेवर देखकर आशा भी सहम गई और वह आनंद से चिपटते हुए बोली – पापा! मैं भी आपके साथ चलूंगी! मैं चाॅकलेट लेकर आउंगी!
अपनी बच्ची की कोमल आवाज में कहे गए इन शब्दों से आनंद को कुछ सुकून पड़ा! वह बिना कुछ कहे सुने आशा को अपनी गोद में लेकर बाहर चलता बना। फिर उसने गैरेज से अपना स्कूटर निकाला और बेटी को उस पर बिठाकर पास के ढाबे पर चाय पीने चला गया। उधर, कमर दर्द और गुस्से से बेहाल राधा ने बेडरूम की शरण ली और वह बिस्तर पर पसर गई।
उधर, आनंद अपने इलाके के ढाबे की ओर स्कूटर से बढ़ता जा रहा था। जब वह चिंतामणि चैराहे तक पहुंचा तभी न जाने कहां से सुअरों का एक बड़ा-सा झुंड उसके स्कूटर के सामने तेजी से आ गया। अचानक हुए इस घटनाक्रम को आनंद समझ नहीं पाया और जब तक वह कुछ समझ पाता, स्कूटर के ब्रेक लगा पाता, तब तक उसकी गाड़ी एक बड़े और मोटे सुअर से टकरा गई।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी).