सुनीता मिश्रा
“अच्छा आपको शायर बाबा के घर जाना है?”
किशन जी की बात पूरी होने के पहले ही टैक्सी का ड्राइवर बोल पड़ा।
कुछ देर गांव के नजारों को देखते रहने के बाद अंश ने पूछा?
“पापा यह शायर बाबा कौन है?”
किशन जी के जवाब देने के पहले ही गाड़ी रुक गई और ड्राइवर ने कहा – “उतर जाओ किशन भैया, आपका घर आ गया । आपकी अम्मा को बहुत पहले देखा था। तब तबीयत बहुत खराब थी उनकी । आपको इस दाढ़ी में मैं पहचान नहीं पाया था।”
“एक बात कहूं भैया? सच कहता हूं मै, आपसे ज्यादा पैसा कमाता हूॅं। विश्वास नहीं है तो हमारे घर चलकर देख लो हमारी अम्मा हमारे साथ ही रहती है। यानी अम्मा का और मेरे बाल बच्चे का पेट भर जाए इतना तो कमा लेता हूॅं।
काश आप भी इतना कमा लेते की अम्मा का भी पेट भर जाता ।”
किशन जी व्यंग्य और तिरस्कार की मिली-जुली बात सुनकर शर्म से लाल हो गए थें।
किशन और श्वेता अपना सामान गाड़ी से उतार कर द्वार पर रखने लगे;
तभी अंश, दादी मां! चिल्लाते हुए द्वारा के एक कोने में बैठकर लहसुन साफ करती हुई स्त्री को गले से लगा लिया। यह अंश की दादी थी।
अंश की दादी अंश को बाहों में भरकर खुशी के मारे रोय जा रही थी।
और किशन अपनी दादी को बड़े लाड प्यार से बच्चों की तरह समझाने की कोशिश कर रहा था।
अपने पोते के बाहों को पकड़ वह घर के अंदर आई। जर्जर स्थिति में हो रहा घर, बहुत साफ सुथरा होने के साथ ही हर एक समान को बहुत सुसज्जित ढंग से रखा हुआ था। एक तरफ जमीन पर ढेर सारे पक्के आम रखे हुए थें।
“सुनो तुम आम लेकर खाओ तब तक मैं खाना बनाती हूॅं।” दादी मां ने बड़े प्यार से अपने पोते को कहा।
दादी मां के हाथों का स्वादिष्ट खाना खाने के बाद अंश गांव में सैर-सपाटे के लिए निकल गया। दादी मां ने अंश के उम्र के दो लड़कों को आस पड़ोस से बुला कर अंश की दोस्ती करा दी थी।
रोज सारा दिन अंश अपने दोस्तो के साथ गांव घूमता था, खूब मौज मस्ती करता और रात में वह दादी माॅं से ढेरों बात करता था।
आज अंश ने दादी मां से पूछा? “दादी मां, दादा जी हमारे लिए क्या कभी कुछ संभाल कर नहीं रखते थें?”
तुम्हारे दादाजी ने तो तुम्हारे लिए बक्सा भर कर सामान रखा है! चलो दिखाती हूॅं। दादी मां ने कमरे में रखा एक बड़ा सा लकड़ी का बक्सा खोल दिया। बक्सा कॉपी- किताब और ढेरों लिखे हुए पेजों से भरा पड़ा था।
अंश ने आश्चर्य से उसे देखते हुए पूछा, “यह क्या है दादी माॅं??”
क्रमश:
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