रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
घर छोटा था तो अच्छा था
घर छोटा था तो अच्छा था
सब एक ही कमरे मे रहते थे
लड़ते थे झगड़ते थे पर
साथ मे सोया करते थे ।
घर छोटा था तो अच्छा था
सब एक ही कमरे मे रहते थे ।।
बर्तन भी कम होते थे
एक ही थाली मे खाते थे
न जूठन का कोई मतलब था
सब एक ही लोटा मे पीते थे ।।
घर छोटा था तो अच्छा था
सब एक ही कमरे मे रहते थे ।।
होली तीज़ त्योहारों मे
नए कपड़े मिलते थे
लंकलाट का थान मगा कर
उससे कपड़े बनते थे ।।
घर छोटा था तो अच्छा था
सब एक ही कमरे मे रहते थे ।।
बड़े हुए सब अलग हुए
सब आपस मे दूर हुए
रहते थे जिनके साथ साथ
अब वो घर के हिस्सेदार हुए ।।
घर छोटा था तो अच्छा था
सब एक ही कमरे मे रहते थे ।।
माता पिता हुए बूढ़े तो
आकर पास सब बैठे थे
उनके जज़्बातों की फ़िक्र नही
बस हिस्सा मांगा करते थे ।
घर छोटा था तो अच्छा था
सब एक ही कमरे मे रहते थे ।।
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रमुवा चला ससुरारी का
रमुवा चला ससुरारी का
जूता लिहिस पंचम का
मागिस साईकिल नथुवा की
कुरता मागिस राम खेलावन का ।।
अब काढिस माग टेड़ी वाली
तेल लगाइस खोपड़ी मा
जूता रक्खिस झ्वारा मा
रमुवा चला ससुरारी का ।।
रमुवा की दुल्हिन मटक परी
सासू से वह अइसन बोल परी
अम्मा हम जाइत मइके का
दुई चार दिंनन रहय का ।।
अब बैठिस रमुवा साईकिल मा
झ्वारा टांगिस हैंडिल मा
बाजा बाधिस डंडा मा
रमुवा चला ससुरारी का ।।
रमुवा पहुँचा ससुरारी का
लारिका सब दौरि परे
आये जीजा आये जीजा
कही के सब चिल्लाय परे ।।
रमुवा मुस्की छाडी दिहिस
सब ते पाव छुवाय लिहिस
सासु ससुर सब आय गये
सब ते राम जोहार किहिस ।।
सारी खटिया लै आयी
दुवारे डारिस खटिया का
बिछा गलीचा बइठै का
रमुवा आवा ससुरारी का ।।
जलपान करै के ख़ातिन
सरहज खुटिया बतासा लै आई
सासु बैठी गई पैताने का
पाहुन का ब्यना डोलावै का ।।
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रात तू उदास क्यूँ है
ऐ रात तू इतनी उदास क्यूँ है
तेरे तो कितने साथी है
जो तेरे साथ वो रहते है
फिर भी तू इतनी उदास है ।।
टिमटिम करते तारे आये
तुझ पर अपनी चमक लुटाये
चाँद भी रोशन तुझको करदे
फिर भी तू इतनी उदास है ।।
उल्लू चमगादड़ गाना गये
झींगुर तुझको गीत सुनाये
पपीहा तुझको राग सुनाये
फिर भी तु इतनी उदास है ।।
पवन तुझे हौले से सहलाये
पीपल देखो ताली बजाए
गीदड़ कुत्ते देखो पहरा देते
फिर भी तु इतनी उदास है ।।
तेरे स्वागत के खातिर
लोगो ने घर घर दीप जलाये
बेला संध्या तेरी सखी
तुझको अपने पास बुलाये ।।
फिर भी तु इतनी उदास है ।।
सब शांत हुआ वातावरण
तेरे आगमन को सुन कर
तेरा प्रभाव इस जग मे कितना
आँख नींद से भर जाए ।।
फिर भी तु इतनी उदास है ।।
थाकित व्यथित लोगो को
तू अपनी गोदी मे ले जाए
” उत्तम ” नींद को पा करके
सब जन चैन से सो जाये ।।
फिर भी तू इतनी उदास ।।
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तेरी महिमा
तुम शारद चाद की चमक लिए
मै काली रात अमावस हूँ
तुम उगे सूर्य की लाली जैसी
मै अस्तांचल का सूरज हूँ ।।
तुम रूप श्रृंगार की रानी हो
मै करुण व्यथा का अलंकार
तुम ममतामयी सी मूरत हो
मै कठोर ह्रदय का स्वामी हूँ ।।
तेरे पथ पर फूल बिछे
मै शूल भरे पथ का गामी हूँ
तुम शीश चढ़ी हरि प्रिया हो
मै शिव का कोप का भागी हूँ ।।
तुम खुले केश की मेघ प्रिये
मै गिरते वर्षा का पानी हूँ
तुम गिरी बूँद मोती सी हो
मै बहता पानी गलियों का हूँ ।।
तुम बहती हवा सुरभि सी
मै हवा बवंडर तुूफ़ानो सा
तुम चाँद की खिली चाँदनी सी
मै उस पर लगा ग्रहण सा हूँ ।।
तुम कवि की सम्मानित कविता हो
मै पढ़ने वाला एक पाठक सा हूँ
तुम सम्मानो की दाता हो
मै तुमको पाने वाला एक कवि ।।
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कली और भंवरा
कली ने भंवरे से पूछा बात क्या ऐसी हो गई
पास आये तुम गुन गुना कर और मै सो गई
जब मुझे खिलना है कल तो आज क्यू तुम आ गये
गुन गुना कर लोरी सुनाई और फिर मै सो गई ।।
नींद मीठी आ गई स्वप्न मे मै खो गई
सूर्य की किरणे पड़ी तो जाग कर मै खिल गई
देख कर मेरा खिला ये रूप तितलियाँ भी आ गई
इस गुलिस्ता मे मुझे कलियाँ बहुत तड़फा गई ।।
चाँद की वो चाँदनी से धुली तारो की रानी लग रही थी
मौसम के रंग ओढे मै चुनर झूमती लताओ पर रही थी
आई याद बिछुड़ने से मिलन की वह मधुर सी बात
अमल कोमल तनु तरुणी सी थी फूल जैसे खिल गई ।।
कही चम्पा कही जूही कही बेला रात रानी हो गई
सुन कर तेरे मधुर संगीत को मै खिलखिला कर हँस पड़ी
उपवन – सर – सरित गहन गिरी कानन कुंज लता पर खिल गई
मतवाले यौवन से भरी तरुणी मस्तानी सी हो गई ।।
जब मुझे खिलना है कल तो आज क्यू तुम आ गये
गुन गुना कर लोरी सुनाई और फिर मै सो गई ।।