(AI generated story)
प्रस्तुति: शिखा तैलंग. भोपाल
एक दिन, जब गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ चल रहे थे, एक व्यक्ति गुस्से से भरा चेहरा लेकर उनके पास आया। बिना कुछ कहे, उस व्यक्ति ने बुद्ध के चेहरे पर थूक दिया।
शिष्य हैरान और क्रोधित हो गए। वे उस व्यक्ति को दंडित करना चाहते थे, लेकिन बुद्ध शांत रहे।
उन्होंने बस अपना चेहरा पोंछा और उस व्यक्ति से पूछा, “अब आगे क्या? अब तुम क्या करना चाहोगे?”
वह व्यक्ति उलझन में था। उसने उम्मीद की थी कि बुद्ध गुस्से में प्रतिक्रिया करेंगे। इसके बजाय, बुद्ध की शांति और धैर्य ने उसे बेचैन कर दिया। वह बिना कुछ कहे चला गया।
अगले दिन, वही व्यक्ति वापस आया। इस बार, वह बुद्ध के पैरों में गिर गया और रोने लगा।
“मैंने कल जो किया उसके लिए मुझे खेद है,” उसने कहा। “मैं क्रोध और अज्ञानता से भरा हुआ था। कृपया मुझे माफ़ करें।”
बुद्ध ने उसे दयालुता से देखा और कहा, “माफ करने जैसा कुछ भी नहीं है। कल जिस आदमी ने मुझ पर थूका था, वह अब यहाँ नहीं है। और आज मैं जो हूँ, वह वही व्यक्ति नहीं है जिस पर तुमने थूका था। चलो अतीत को भूल जाते हैं।”
वह आदमी बहुत दुखी हुआ। उसका दिल हमेशा के लिए बदल गया। वह बुद्ध का अनुयायी बन गया और आत्म-साक्षात्कार की अपनी यात्रा शुरू की।
नैतिक: सच्चा ज्ञान करुणा और क्षमा से आता है। क्रोध को क्रोध से नहीं हराया जा सकता – केवल समझ से।
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