शबनम मेहरोत्रा , कानपुर
कोई राह नजर ना आये जब
कोई राह नजर ना आये जब
घनघोर अंधेरा छा जाये जब
तब प्रभू को याद कर लेना
कुछ पल ऑंखें बंद कर लेना
तब अंतर्मन कि सुन लेना
मुमकिन है हम तुम मिथ हों
पर अंतर्मन सच बोलेगा !
जब प्रतिपल तुम पर भारी हो
और दुख भी सुख पर भारी हो
जब तुम दुविधा में पड़ जाओ
और युक्ति कोई ना काम आये
तब नैनों के पट बंद कर लेना
तब अंतर्मन की सुन लेना
मन ही तुमसे सच बोलेगा
जब झूठ – सच में फ़र्क़ न हो
जब ग़लत-सही में घिर जाओ
तुम नज़र में अपनी गिर जाओ
इस बात पे थोड़ी देर तलक
तुम नयन द्वार बंद कर लेना
और अंतर्मन कि सुन लेना
वो ही राह सही दिखायेगा
जब मन तमस से घिर जाये
तुम संदेह घेरे में जकड़ जाओ
जब मन पंछी बन घबराये जाये
तब अलकों का पट बंद कर लेना
आराध्य को अपने याद कर लेना
साँस सरगम पे नाम सिमर लेना
अंतर्मन सच बोलेगा सुन लेना
ये जीवन धूप और छाया है
दुख दर्द संघर्षों कि माया है
जग में तुम जब खोने लगो
और खुद से ही दूर होने लगो
नयन झरोखा बंद कर लेना
मुमकिन है हम तुम झूठ कहें
अंतर्मन सच बोलेगा सुन लेना
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नाराज
करोड़ों की भीड़ में —
अलग अलग चेहरों के बीच ।
एक तुम्हीं क्यों बसे इन नैनो में ?
तुम्हारी एक झलक पाने को
बस बातें करने भर को
क्यों ललाइत होता रहा मन ।
कुदरत का करिश्मा हुआ और,,,
मिल गए हम और तुम ।
सपने सँजोए / कल्पनाएँ की
अंतिम सांस तक मिलने का —
हुआ वादा ।
अचानक क्या हुआ ?
टूट गया प्रेम का धागा ।
न तुम स्वार्थी थे न मैं !
दोष दूँ तो किसे ?
मान लेते है भाग्य ।
तुम तो जैसे मेरे प्राण/ मेरा जीवन बन गए थे
जाते हो अगर एक वादा करते जाओ
दिल में तसल्ली भरते जाओ
जिंदगी नाराज मत होना कभी तुम
याद में रोती रहेगी शबनम,,,शबनम ,,,शबनम
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संगीत
नई पुरानी परंपरा की खुद से रीत जोड़ ले
काया और आत्मा से अब तू प्रीत जोड़ ल
सब के मन में वो बसे हैं उनसे कैसी घुंघटा
वो सभी के मीत है तू मन का मीत जोड़ ले
कविता की तुम हर विधा में काव्य की रचना करे
फिर न क्यों तू प्रभु चरण की गीत जोड़ ले
भूतकाल काली तुम्हारी वर्तमान अच्छा नहीं
फिर भविष्य से क्यों नहीं अतीत जोड़ ले
नाम होगा यश मिलेगा लोग जानेंगे तुम्हें
जिंदगी में शबनम अब संगीत जोड़ ले
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