रचनाकार : विजय कुमार तैलंग, जयपुर
मंगल चौंका और बोला, “ये कौन है? “
“ये चौकीदार की बेटी या रिश्तेदार होगी। ” प्रताप बोला।
“लेकिन चौकीदार ने कभी ब्याह नहीं किया तो बेटी कैसे?” मंगल बोला। प्रताप कुछ नहीं बोला।
खैर, दोनों ने उस बाला से अपना-अपना चाय का कप ले लिया, चाय लेते हुए बाला के तनिक उघड़े हुए घूँघट से प्रताप ने उसकी सूरत देखी तो हैरान रह गया, वह बेहद खूबसूरत थी। प्रताप ने उसकी कजरारी आँखों का तीखा सा कटाक्ष झेल लिया था। वह चाय देकर अपना घूँघट संभालती हुई तेजी से वहाँ से चली गई। प्रताप उसकी सुंदर छवि देखकर कुछ सोच में पड़ गया और धीरे धीरे चाय पीने लगा।
“चौकीदार करतारसिंह ने कभी शादी ही नहीं की और कोई रिश्तेदार लड़की अकेले आदमी के साथ इस सुनसान बंगले में कैसे रुक सकती है?” चाय की चुस्की लेते हुए मंगल बोला। प्रताप मुस्कुरा कर रह गया।
“साब, आप दोनों के लिए सोने का प्रबंध कर आया हूँ। खाना बन रहा है। आप चाहो तो बंगले में चलकर मुँह हाथ धो लो।” करतार सिंह ने आकर विनम्रता से झुक कर कहा।
“अरे, करतारसिंह! तूने इस उम्र में क्या शादी कर ली?” मंगल से रहा नहीं गया तो बोल पड़ा।
करतार सिंह ने हैरानी से मंगल को देखते हुए कहा,
“ये क्या कह रहे हो बाबू? मैं बाल ब्रह्मचारी, बालाजी का पुजारी, शादी की सोच भी नहीं सकता!”
प्रताप फ्रेश होने के लिए उठने वाला ही था कि करतार सिंह का उत्तर सुनकर ठिठक गया।
“…… तो वह कौन है, जो अभी हमें चाय देकर गई है?” मंगल ने प्रश्न किया।
“क्या मजाक कर रहे हो बाबूजी, मैं ही तो आप दोनों को चाय देकर गया हूँ।” करतारसिंह का उत्तर सुनकर प्रताप भी दंग रह गया।
रात हो गई थी और मोटर साइकिल में काफी पेट्रोल भी नहीं था। होता तो भी इतने अंधेरे में शहर तक जाना जोखिम भरा हो सकता था क्योंकि अमावस्या की अंधेरी रात थी और मोटरसाईकिल की हेड लाइट में भी खराबी थी इसलिए प्रताप के पास वहाँ ठहरना अनिवार्य हो गया था अन्यथा वह मंगल को लेकर कब का चला गया होता। मंगल की भययुक्त मुखाकृति देख वह भी संदेह में आ गया।
प्रताप ने मंगल को इशारे से बंगले के हाॅल में चलने के लिये बुलाया। वह प्रताप के साथ बंगले में आया तो प्रताप बोला – “यह कोई चमत्कार नहीं है। यहाँ मुझे षड्यंत्र की बू आ रही है इसलिए डरने की जरूरत नहीं। हमें केवल चौकस रहना है।” मंगल को प्रताप की बात से थोड़ा साहस व संतोष मिला।
थोड़ी देर बाद —
“आप लोग फ्रेश हो गए हों तो खाना लगवा दूँ?” करतार सिंह ने आकर पूछा।
क्रमश:
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