रचनाकार: जयंती, पश्चिमगाँव (यूपी)
एक दिन शर्मा अंकल मेरे घर लगभग तीस साल के एक सज्जन व्यक्ति के साथ आए और पापा से बोले मिश्रा जी, ये मास्टर साहब हैं इनको रहने के लिए एक कमरा चाहिए, आप एक दिन कह रहे हैं न कि कोई संभ्रांत परिवार हो तो बताना ऊपर किरायेदार रखना है।
मुझे मास्टर जी से संभ्रांत कोई नही लगा इसलिए मैं इन्हें ले आया, ये आपकी ही बिरादरी के हैं। और ये जो पड़ोस में इंटर कॉलेज है उसी में पढ़ाते हैं, इसी हफ्ते इनका ट्रान्सफर हो कर आया है। मास्टर साहब अपनी ही बिरादरी में ही कमरा लेना चाहते थे, जिससे पेंगेस्ट रह सकें । ये बिचारे अकेले आदमी कहां खाना बना खा पायेंगे। फिर पापा को किनारे ले जा कर बोले मिश्रा जी मास्टर साहब सुबह विद्यालय चले जाएंगे और शाम को आएंगे, सारा दिन की खिंचखिंच भी नहीं रहेगी। पापा को भी ठीक लगा इसलिए मास्टर जी को किराए पर रख लिया।
नमस्ते,मित्रों मेरा नाम सुहानी है, बात उन दिनों की है जब मैने हाइस्कूल की परीक्षा पास की थी और हाइस्कूल में मेरे नंबर अच्छे नहीं आए तो पापा थोड़ा परेशान थे,उन्हें लगा कि मुझे एक ट्यूटर की अवश्यकता है। एक दिन पापा ने मम्मी से कहा क्यों न मास्टर जी से बात की जाए कि वह बिटिया को एक घंटे ट्यूशन पढ़ा दिया करें। मम्मी ने भी हांमी भर दी। पापा ने मास्टर जी से बात की, वैसे तो मास्टर जी शांत स्वभाव के थे, किसी से ज्यादा बात नही करते थे, स्कूल से आने के बाद वे अपने कमरे में ही रहते थे बाहर भी कोई काम पड़ने पर ही निकलते थे, वे अपने कमरे में किताबें पढ़ा करते थे । लेकिन उन्होंने कहा ठीक है वैसे भी विद्यालय से आने के बाद मुझे कोई काम नही होता मैं खाली रहता हूं, आप बिटिया को पांच बजे भेज दिया करिए मै पढ़ा दूंगा। मुझे मास्टर जी से डर लगता था।जब मम्मी मुझे कभी खाना देने के लिए भेजती थीं तो मै जल्दी से उनके दरवाजे के पास रखे स्टूल पर रख कर भागती थी।
मेरा मास्टर जी से पढ़ने का मन बिलकुल भी नहीं था, लेकिन पापा के डर से मैंने किताबें उठाई और बेमन से पढ़ने गई। मास्टर जी को अच्छा ज्ञान था वे बहुत अच्छा पढ़ाते थे। मेरी अग्रेंजी दो हफ़्ते में ही सुधारने लगी। धीरे धीरे मेरा डर भी कम होने लगा और मैं धीरे धीरे खुलती गई। मैं नटखट और बातूनी लड़की थी और मास्टर जी बहुत कम बोलते थे।
क्रमशः
बहुत बहुत धन्यवाद।