रचनाकार : दिविक रमेश, नोएडा
विचारधारा जीवन दर्शन के रूप में मुझे अब भी प्रिय है।
शमशेर जी अपनी रचनाओं पर बहुत मेहनत करते थे। भाषा-शिल्प के प्रति वे अत्यंत सजग कवि थे। मेरी रचना-प्रक्रिया पर उनका प्रभाव पड़ता ही था। उनका प्रभाव तब जाकर थोड़ा कम हुआ जब त्रिलोचन जी का दिल्ली आगमन हुआ और उनसे मेरा सम्बन्ध प्रगाढ़ से प्रगाढ़तम होता चला गया। त्रिलोचन जी ने मेरा ध्यान मेरी उन कविताओं की ओर विशेष रूप से दिलाया जिनमें मेरा गाँव बोलता था। त्रिलोचन जी के साथ ने मेरी कविता-धारा को जैसे मोड़ ही दिया। ‘खुली आँखों में आकाश’ नाम का मेरा दूसरा कविता-संग्रह त्रिलोचन जी की महीन छलनी में छन कर आया। संग्रह का खूब स्वागत हुआ। मुझे पहला पुरस्कार मिला – सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार।
संक्षेप में कहूँ तो जिन अन्य वरिष्ठ साहित्यकारों ने मुझे आत्मीयता दी और मेरी रचना-प्रक्रिया को जीवन्त बनाया उनमें धर्मवीर भारती, जगदीश गुप्त, रामदरश मिश्र, जगदीश चतुर्वेदी, सोमदत्त, श्याम विमल, भवानी प्रसाद मिश्र और बच्चन जी तथा केदारनाथ सिंह और काफ़ी बाद में चलकर विष्णु खरे और अशोक वाजपेयी का नाम विशिष्ट है। केदार जी ने मेरे तीसरे संग्रह ‘हल्दी-चावल और अन्य कविताएँ’ के लिए कविताओं का चयन किया। विष्णु खरे ने चॊथे संग्रह ‘छोटा सा हस्तक्षेप’ के लिए कविताओं का चयन किया और अशोक वाजपेयी ने तो तमाम कविताओं से एक चयन ‘गेहूँ घर आया है’ तैयार किया। बच्चन जी ने एक समय में मुझे बहुत ही ऊर्जा दी। वे पीठ के पीछे भी आप की प्रशंसा करने वालों में से थे। विष्णु खरे भी ऐसे हैं। मुँह देखी या तात्कालिक प्रशंसा तो बहुत करते हैं। बच्चन जी से सवाल-जवाब की एक पुस्तक है – ‘जिज्ञासाएँ मेरी समाधान बच्चन के’। प्रश्नकत्र्ता कमल किशोर गोयनका हैं। उसी पुस्तक से एक अंश उद्धृत कर रहा हूँः
‘प्रश्नः कौन-कौन से युवा कवि आगे जीवित रहेंगे और हिन्दी कविता को नया रूप-रंग दे सकेंगे?
उत्तर: मैंने लगभग दो सौ कवियों के काव्य-संकलन पढ़े होंगे। अपने समकालीनों को छोड़ दें तो कवियों की दो पीढ़ियां आयी हैं – एक जो इस समय 50-55 के बीच में है, दूसरी जो इस समय 25-30 के बीच में है। पहली के प्रतिनिधि कवि मैं भारती, सर्वेश्वर, कुंवर नारायण को मान लूँगा। उनके साथ विजयदेवनारायण साही, श्रीकान्त, केदारनाथ सिंह भी याद आते हैं – धूमिल भी।
दूसरी श्रेणी में मुझे ऐसी विशिष्टता नहीं दिखी जो भविष्य में उत्कृष्टता तक उठने की सम्भावना लिये हो।
दोनों के बीच दिविक रमेश का नाम कुछ उभरता है।
प्रश्नः दिविक रमेश की कविताओं में आपको किस प्रकार की विशिष्टता दिखायी दी है?
उत्तरः उनकी उद्भावना और अभिव्यक्ति ईमानदारी और मौलिकता का आभास देती है।
उपर्युक्त अंश को उद्धृत करने का उद्देश्य यह भी है कि वरिष्ठ साहित्यकारों का वस्तुपरक एवं निद्र्वन्द्व प्रोत्साहन नये रचनाकारों को सृजनरत रहने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता है। साथ ही रचनाकार अपनी रचना के उन आयामों से परिचित हो पाता है जो उसकी अपनी देन होते हैं।
मेरा झुकाव दर्शन की ओर भी रहा है। मार्क्सवादी दर्शन की ओर तो मेरा स्पष्ट झुकाव रहा ही है लेकिन मैंने थोड़ा बहुत अध्ययन भारतीय दर्शन का भी किया है। आज भी जब मैं बोर होता हूँ तो या तो दर्शन की पुस्तक पकड़ता हूँ या फिर अपने देश की कला और संस्कृति से सम्बद्ध पुस्तक। मैं समझता हूँ इस अध्ययन ने भी मेरी रचना-प्रक्रिया को दृष्टि के स्तर पर प्रभावित किया है। मैं जानता हूँ मेरी कुछ रचनाओं का उत्स यह अध्ययन भी रहा है।
अंत में, इतना ही कहना चाहूँगा कि मुझसे सृजन कभी भी ‘होमवर्क’ की तरह नहीं हुआ। कभी-कभार ऐसा समय भी आया जब मैं महीनों नहीं लिख सका हालाँकि लिखने की बेचैनी बनी रही। लिखा मुझसे तभी गया जब कोई रहस्मय भीतरी दबाव अपने चरम पर पहुँचा। यह भीतरी रहस्यमय दबाव क्या है मैं नहीं जानता। यह कब क्यों बनता है, मैं नहीं कह सकता। हाँ, इतना ज़रूर है कि न लिख पाने की स्थिति मेरे लिए बहुत ही व्याकुल कर देने वाली भयावह स्थिति होती है। यहीं, प्रसंगवश, मैं यह भी लिख दूँ कि बच्चों के लिए भी मैं जो कविताएँ लिखता हूँ वे किसी विषय पर नहीं होती बल्कि अनुभव जन्य होती हें और बहुत हद तक रहस्यमय भीतरी दबाव की तहत ही।
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