रचनाकार : दिविक रमेश, नोएडा
दिल्ली के एक गाँव किराड़ी में मेरा जन्म हुआ। जहाँ तक मैं याद कर सकता हूँ, तब दिल्ली का अर्थ मेरा गाँव न होकर करौल बाग (देवनगर) होता था जहाँ मेरा ननिहाल है। मेरे होश में, दिल्ली ने बहुत दिनों तक अपनी काया नहीं फैलायी थी। 5वीं कक्षा तक गाँव के स्कूल में पढ़ने के बाद मुझे आगे की पढ़ाई के लिए मेरे ननिहाल भेज दिया गया। दिल्ली यानी करौल बाग आना मेरे लिए कई दृष्टियों से नए-नए अनुभवों का कारण बना।
पिताजी से मेरा बहुत लगाव रहा है। हालाँकि तब उनका गाना-नाचना मुझे पसन्द नहीं था। असल में वे हरियाणवी लोक गायक रहे हैं और स्वांग आदि में लोक नर्तक भी। मेरे नाना साहित्यिक अभिरूचि के व्यक्ति थे। उनका अपना एक छोटा सा पुस्तकालय था जिसमें गद्य-पद्य दोनों प्रकार की पुस्तकें थीं। उनके संसर्ग ने मुझे भी साहित्य और पुस्तकों की ओर मोड़ा। पिता जी का कला-प्रेम भी कहीं न कहीं संस्कारों में पड़ा ही था। नाना जी के साथ में ऐसे आयोजनों में भी जाता जहाँ कविगण अपनी रचनाओं का पाठ करते।
प्रारम्भ में, जहाँ तक कविता का सवाल है, मुझे मेरे मित्र, घर-परिवार के सदस्य, गाँव में स्थित गाय आदि लिखने को प्रेरित करते थे। वे ही मेरे विषय थे। वे रचनाएँ उन्हें सुनाकर मुझे बहुत अच्छा लगता था। तब तक छपने की ओर कोई ध्यान नहीं था। इस बीच, न जाने कैसे, फिल्में देखने का चस्का लग गया। फिल्मी गाने मुझे बहुत अच्छे लगते थे – खासतौर पर रूलाने वाले।
स्थितियों वश सांइस की पढ़ाई छोड़कर मुझे एक प्राइवेट नौकरी करनी पड़ी – दरियागंज में। बी.ए. करने के लिए अजमेरी गेट, दिल्ली स्थित दिल्ली कॉलिज (सांध्य) में प्रवेश लिया। वहाँ की कॉलिज मेग्जीन रजनीगंधा में मेरी कहानी भी छपी और गीत भी। यहाँ पहले मेरा सम्पर्क हुआ डॉ. कमल किशोर गोयनका से। आत्मीयता और प्रोत्साहन मुझे उनसे बहुत मिला। दूसरे वर्ष में उन्होंने मुझे छात्र-सम्पादक ही बना दिया। उन्हीं दिनों हमारे एक और अध्यापक थे डॉ. गंगा प्रसाद विमल। अब तक मैं गीत या लयात्मक कविता लिखता था। उनके करीब गया तो उन्होंने एक ओर जहाँ छन्द युक्त (फ्रीवर्स) कविता लिखने को कहा वहीं रचनाएँ पढ़ने की भी सलाह दी। साथ ही लम्बी कविता लिखने का सुझाव भी दिया। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने ‘फ्री वर्स’ लिखना शुरू की।
मेरा स्वभाव, जहाँ तक सृजन करने का सवाल है, अपने निजी सुख-दुःख की बुनियाद पर, अपने से बाहर की दुनिया के सुख-दुःख देखने का रहा है। मेरे अनुभव के निजी-प्रसंग मुझे कविता के लिए केवल तब प्रेरित कर सके हैं जब उनमें विशिष्ट से सामान्य होने की क्षमता-संभावना पैदा हुई है। यह बात अलग है कि अनुभव की निजता मेरे लिए सृजन का एक लगभग अनिवार्य कारण रही है। यही कारण है कि मैं सामाजिक कही जा सकने वाली रचनाएँ अधिक कर सका और बावजूद सहज किशोर या युवा आकर्षणों के जैसी कविताएँ बहुत कम लिख सका जिन्हें कोमल भावों की कविताएँ कह सकते हैं।
क्रमश:
2 Comments
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बहूत् सुन्दर आत्म कथा
बहुत सुंदर