रचनाकार : पंकज शर्मा “तरुण “. पिपलिया मंडी (म. प्र.)
बांटें सब को प्यार (दोहे)
सुख की परिभाषा यही,रखना शुद्ध विचार।
चिंता सारी दूर हों, बांटें सब को प्यार।।1
हो आशाएं पूर्ण तो,सुख की हो बरसात।
मधुर स्वप्न में ही कटे,जीवन की हर रात।।2
याचक घर के द्वार पर,हो न कभी निराश।
हरी भरी धरती रहे,नीला हो आकाश।।3
सच्चाई का साथ हो,स्वस्थ रहे परिवार।
तभी लगेगा आपको, सतरंगी संसार।।4
काम क्रोध अरु लोभ का,करें सभी परित्याग।
जड़ चेतन के प्रति रहे, सब के मन अनुराग।।5
तन मन सबके स्वस्थ हों,सुविधा मिले अपार।
महक उठे घर आँगना, स्वर्ग लगे संसार।।6
राम लखन सम भ्रात हो,सीता सम हर नार।
चले जगत में सुख भरी,शीतल मन्द बयार।।7
राजा हो जब राम सा,अवध पुरी सम देश।
थाने सारे बंद हों,जब हो नहीं कलेश।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
जनमत (छंद)
जन मत आज जगा कर देखो।
हम पल साथ निभा कर देखो।।
हर दिन बोल रहा यह भाई।
प्रियतम आज हुआ हरजाई।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
सुनो साथियों (छंद)
सुनो साथियों।
सरगम आज बजा कर देखो।
गुलशन आज सजा कर देखो।।
उजड़ गया यह था घर प्यारा।
सब कहते कितना तब न्यारा।।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
ठिठुरन (मुक्तक)
ठिठुरन बढ़ती जा रही,किट-किट बाजे दांत।
पंछी बैठे धूप में, लगा- लगा कर पांत।।
रवि की रंगत यूं लगे, जैसे दिन हो शाम।
सिकुड़ रहे सारे सुमन,हिम कण झेले पात।।