झाँकी हिंदुस्तान की
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएंँ झाँकी हिंदुस्तान की.
इस मिट्टी से तिलक करो ,यह धरती है विद्वान की।
देखो यह तस्वीरें अपने आर्यभट्ट ,चरक ,पतंजलि ,सर सी .वी. रमन महान की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की,
आर्यभट्ट ने विश्व को शून्य दिया,गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त महान की,
महर्षि चरक पिता कहलाए, भारतीय चिकित्सा की ज्ञान की ।
विद्वानों ने लगा दी बाजी अपने हृदय -प्राण की ,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की।
यह भूमि है ,योग पिता पतंजलि , डॉक्टर विक्रम साराभाई,धरती है गुनी महान की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की।
यह धरती है मिसाइल मैन ,डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम की,
,इन्होंने अपनी जीवन सौंपी, मिसाइल की निर्माण की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की ।
अंतिम क्षण में हजारों विद्यार्थियों को अपनी ज्ञान दी,
बोल रही है कण कण जुबानी हिंदुस्तान की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की।
यह धरती है ,जानकी अम्माल ,असीमा ,अन्नामनी जैसी वैज्ञानिकों की ,
जिन्होंने परचम लहराया ,शोध विज्ञान की ।
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की।
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की।
यह जन्मभूमि और कर्मभूमि है झाँसी, शिवाजी ,गांधी और सुभाष महान की,
इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है विद्वान की।
देखो यह तस्वीरेँ ,अपने गौरव और अभिमान की,
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की,
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है विद्वान की।
जय हिन्द! जय भारत !!
–सुनीता कुमारी
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आर्यावर्त अपना
श्रेष्ठ है आर्यावर्त ये अपना जहां पर भाई चारा है ।
बनी रहे संस्कृति हमारी ,ऐसा भारत न्यारा है । ।
सुबह – सुबह देवालय में घंटे की ध्वनि गूंजे ,
हर बाला देवी की प्रतिमा, नही सभ्यता टूटे ,
ऋषि मुनियों की भूमि है ये , गंगा जमुना धारा है ।
बनी रहे संस्कृति हमारी , ऐसा भारत न्यारा है ।।
भगत सिंह , मंगल पांडे और यहाँ हुए आजाद ,
जान गंवाई देश की खातिर , ऐसे थे ये जांबाज ,
सदा नमन उन वीरों को ,लहराये तिरंगा प्यारा है ।
बनी रहे संस्कृति हमारी , ऐसा भारत न्यारा है ।।
अद्भुत है इतिहास यहाँ का हर सफहा है खास ,
रानी पद्मा जौहर कर गई ऐसा था इनका परताप,
यहाँ राम,कृष्ण अवतरित हुए काशी भोले बाबा ,
इनके दर्शन करने से ही मिटती जीवन की बाधा ,
ऐसा है ये देश हमारा,,,,,,,, जीवन सारा वारा है ।
बनी रहे संस्कृति हमारी ,ऐसा भारत न्यारा है ।
-जयन्ती तिवारी
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किसान
किसान
अन्नदाता
हमरी भाषा हमरी बोली इ बाटे हमरी पहचान
कोई कहत है अन्नदाता और कोई कहत है किसान
अतिवृष्टि अनावृष्टि दोनों हमरी
दुश्मन
रात दिवस मेहनत करके बीते
दुख में जीवन
सारा जग बा हमारे दुख से ,बुझ के भी अनजान
कोई कहत है अन्नदाता और कोई कहत किसान
कोई कहत है अन्नदाता और कोई कहे किसान
सारे जग के पेट हम भरते , पर
रहते है भूखे
अन्न वनस्पति जग को खिलाते ,
खुद खाते हैं रूखे
क्यों नाराज सदा से हम पर , रहते है भगवान
कोई कहत है अन्नदाता और कोई कहत किसान
-शबनम मेहरोत्रा
One Comment
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Bahut achhi kavitaye