रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” , लखनऊ
दुवार वीरान सा लगता है
उड़ गये पंछी सारे
जो पेड़ो पर बैठा करते थे ।
तोता मैना की कहानी
बाबा रोज सुनाते थे ।
चिड़िया झुण्ड बना कर आती थी
दिन भर चहका करती थी ।
कोयल बैठ कर डाली पर
सुन्दर गीत सुनाती थी ।।
कौवा काव काव करता था
कठफोड़वा पेड़ो मे छेद बनाता था ।
चढ़ी गिलहरी टिल टिल करती
तोता बोली बोला करता था ।।
हरी भरी डालो से
क्या सुन्दर हवा दिया करते थे ।
कट गये वो हरे भरे पेड़ सब
जिन पर झूला डाला करते थे ।।
गुलर पीपल बरगद नीम
दिन भर छाया रखते थे ।
पंछियो का दिन भर कलरव होता था
पेड़ो की छाया के नीचे पशुओ को बाधा करते थे ।।
जब से पेड़ कटे दुवारे के
घर सुूना सुूना लगता है ।
खत्म हुई पहचान मेरे घर की
अब दुवार वीरान सा लगता है ।।
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तुझ पर मै गीत लिखूूँगा
तुझ पर मै गीत लिखूूँगा
जब भी कोई गीत लिखूूँगा
उसमे तेरा नाम लिखूूँगा ।
तेरी बेनी की लहर देख
उस पर नागिन की चाल लिखूूँगा ।
तेरे अधर के ऊपर के तिल को
पुष्प पर बैठा मकरन्द लिखूूँगा ।
गोल कपोल की लाली को मै
लाल गुलाब की उपमा दुूँगा ।।
तेरे माथे पर चमकी बिदिया को
सूरज का मै तेज लिखूूँगा ।
तेरी कजरारी आँखो की सुंदरता को
मृगनैनी की उपमा दुूँगा ।।
तुम मेरे सामने बैठी रहो
सुन्दर वर्णो के शब्द लिखूूँगा
सारे स्वर औ रस मिला कर
सुन्दर मनमोहक गीत लिखूूँगा ।।
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तुम कहो तो
तुम कहो तो तुमसे प्यार करूँ
आते जाते तुमसे कुछ बात करूँ ।
खो जाऊं तेरी बाहो मे
ऐसी कोई इक रात करूँ ।
तुम ढक लो अपनी जुल्फों से
जब सघन घटा घिर आये
तब अपने प्रेम की बूदों से
रिमझिम रिमझिम बरसात करो ।
रस बूँदे तुम बरसाती हो
भर नव उमंग तुम लाती हो ।
मेरे सूखे जीवन पथ पर
तुम हरित भूमि को लाती हो ।।
काली घटा सी मुझ पर छाव करो ।।
अपने हिय प्रेम को देकर तृप्त करो
रख दो दहकते अधरों को
मेरे अधरों की शीत हरो ।।
मेरे तन की व्याकुल प्यास को तुम
अपने रज तेज से तृप्त करो
उस महामिलन अतृप्त रात्रि को
इस प्रेम मिलन से तृप्त करो ।।