रचनाकार : यशवन्त कोठारी, जयपुर
हां-हां, क्यों नहीं, मुख्यमंत्री ने कहा लेकिन युवा आगे आते कहां है ?
एक युवक तो अपन के सामने खड़ा है बाबू मनोहर लाल असीम लेखक, पत्रकार, युवा नेता और ईमानदार। कयों मनोहर चुनाव लड़ोगे ?
आप लोगों का आदेश सिर माथे और तय हुआ कि टिकट मनोहर को दे दिया जाये।
वक्त की बात, भगवान ने छप्पर फाड़ कर दिया और इतना दिया कि बाबू मनोहरलाल असीम एम.एल.ए. बने और जीतने के तुरन्त बाद मंत्री बने। मंत्री के रूप में उनको स्थानीय निकायों का काम मिला। और यहां पर उनका सामना स्व. इब्राहीमजी के पुत्र अब्बास से हुआ।
अब्बास को इस बात का रंज था कि उसके पिता का टिकट मनोहर बाबू ले उड़े और अब उनके पास उसे अपने स्कूल की भूमि के मामले में जाना पड़ेगा। अब्बास भी प्रभावशाली नेता था लेकिन इस चुनावी कुम्भ में मात खा गया था।
उनके पास शहर के पास पचास बीघा जमीन थी जिस पर स्कूल और खेत थे जिसे लेकर सरकार कॉलोनी बनाना चाहती थी और नाम मात्र का मुआवजा दे रही थी। इसी सिलसिले में एम.एल.ए. साहब के पास आये थे। मनोहर बाबू अपनी विनम्रता से उनको जीतना चाहते थे।
अब्बास भाई, पहले चाय पीजिए फिर बात होगी।
हां, तो साहब बतायं क्या किया जाये ?
करना क्या है, हमें उचित मुआवजा दिया जाये। आपके हिसाब से सरकार सौ रुपये मीटर खरीद कर पच्चीस सौ रुपये मीटर में बेच रही है। और पच्चीस गुना मुनाफा हद है साहब ।
लेकिन जमीन में बिजली की लाईन, पाइप, सड़क का खर्चा भी तो होगा।
हुआ करे साहब यह तो सरकार की जिम्मेदारी है कि रियाया को सहूलियत मिले। अंधेर है साहब यह तो।
अच्छा छोड़िये, ये बताइये आप रहते कहां है ?
कहां रहता हूं ? क्या मतलब ? सरकार की ओर से बंगला मिला है। मैं युवा लीडर हूँ ।
वो तो ठीक है हुजूर लेकिन यह बंगला तो सरकारी है, कभी भी खाली करना पड़ेगा। फिर क्या होगा।
यह तो कभी सोचा ही नहीं।
तो हुजूर ये तय रहा कि उस जमीन में से 500 मीटर के 10 प्लॉट आपको एक सौ रुपये मीटर पर मैं अलाट कर देता हूं और उनका डेवलपमंट सरकार मुफ्त करेगी। बोलो मन्जूर है।
जैसी हुजूर की इच्छा।
लेकिन अफसर नहीं माना – एम.एल.ए. साहब ने कहा।
अफसर जी, होगा वहीं जो हम कह रहे हैं। आप नहीं करेंगे तो कोई दूसरा अफसर करेगा। हम फाइल पर लिखकर आपको भेज देगें । एम.एल.ए. साहब ने फाइल पर मार्क किया और फाइल भेज दी।
अब्बास साहब गद्गद होकर कह उठे-
हुजूर आप बड़े खानदानी और सज्जन हैं। लेकिन साला ये अफसर पक्का बेईमान है।
आप निश्ंचत रहिये और एम.एल.ए. साहब के चेहरे पर सफलता की कुटिल मुस्कान छा गई।
(काल्पनिक रचना)
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