रचनाकार : यशवन्त कोठारी, जयपुर
नानूजी ने मन ही मन बापू की आत्मा को गालियां दी और मुंह से कहने लगे।
आप तो बेकार नाराज हो रहे हैं। चलिए राजधानी चलते हैं। मुख्यमंत्री आपको बुला रहे हैं।
हम नहीं मानेगे। जब तक हरिजन विकास संघ नहीं बन जाता हम नहीं आयेंगे।
अरे वहीं तो हम कह रहे हैं। हरिजन विकास संघ बन गया है और मुख्यमंत्री तुम्हे ही उसका अध्यक्ष बनाना चाहते हैं।
लेकिन मैं अध्यक्ष बन कर क्या करुंगा ?
अरे करना क्या है भाई, पांच करोड़ का सालाना अनुदान है। खूब हरिजन उद्धार करो। कुएं खोदो, सड़के बनाओ, संगठन बनाओ। पार्टी को मजबूत करो। तुमसे कोई हिसाब नहीं मांगा जायेगा।
ठीक है लेकिन देखिये नेताजी, कोई धोखा नहीं होना चाहिये।
क्या बात करते हैं आप भी। आज तक मैंने ऐसा किया है क्या ?
तो आप कल तक राजधानी आ जायें और मुख्यमंत्री से मिलकर सब तय कर ले ।
देखिये नेताजी आपकी कुछ सेवा तो हम नहीं कर पाये।
चिंता न करे यह जो लड़का है न हम साथ ले जा रहे हैं राजधानी हमारी रोटी पानी का बन्दोबस्त यही करेगा अब।
क्यों चलना है राजधानी ?
क्यो नहीं हुजूर अवश्य चलूंगा – मनोहर ने तपाक से कहा।
सेवा करना तो हमारा धर्म है। हम तो हुजूर के साथ ही चल रहे हैं और मनोहर राजधानी आ गये। धीरे-धीरे वे राजधानीमय हो गये।
चुनावी कुम्भ राजधानी में जोर शोर से चल रहा है। प्रदेश पार्टी कार्यालय में जबरदस्त भीड़ है और इस भीड़ को काबू में कर रखा है बाबू मनोहरलाल असीम याने एम एल ए साहब ने .
बाबू मनोहरलाल असीम और कोई नहीं, नेताजी जो अब प्रदेश अध्यक्ष हैं के निजी सेवक मनोहर हैं। उत्साही, युवा, कर्मठ और लगनशील मनोहर ने नेताजी के दफ्तर में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है।
टिकटार्थियों का साक्षात्कार चल रहा है और बाबू मनोहर उनकी पत्रावलियों को मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और केन्द्र से आये पर्यवेक्षक को दे रहे थे। जिस तेजी से प्रदेश अध्यक्ष के सहयोगियों के नाम कट रहे थे, उसे देख कर नेताजी का मन खिन्न था। इसी बीच देलवाड़ा विधानसभा सीट हेतु उम्मीदवार के चयन का काम शुरू हुआ। यह सीट इब्राहीम के लिए तय थी, मगर अचानक इब्राहीम के निधन से किसी अन्य को खड़ा करने पर विचार करना पड़ रहा था।
नेताजी बोल उठे।
हमें कुछ युवा उत्साही लड़कों को आगे लाना चाहिये।
हां-हां, क्यों नहीं, मुख्यमंत्री ने कहा लेकिन युवा आगे आते कहां है ?
क्रमश:
(काल्पनिक रचना)
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