रचनाकार : समीर गांगुली
गोल -मोल जवाब मिलेंगे अगर आप समझदार या फिर सर्वज्ञानी गूगल से इस शीर्षक को सवाल बना कर पूछेंगे?
लेकिन यकीन मानिए , मैं आपको संतोषजनक, तर्कसंगत और विश्वसनीय जवाब देने की कोशिश करूंगा.
यही सवाल मेरे मन में आज से चार या पांच साल पहले आया था, जब मैंने हिन्दी बाल साहित्य के साथ लेखक के रूप में दोबारा जुड़ने की कोशिश की थी.
चलिए सबसे पहले अपने बारे में दो बातें. मैंने सन 1973 में हिन्दी बाल-साहित्य लिखना शुरू किया और सन 1975 से नियमित रूप से मेरी रचनाओं का नियमित रूप से प्रकाशन शुरू हुआ. उस समय मैं देहरादून में रहता था और कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था. मैं एक अच्छा पाठक था और हिन्दी के अलावा बंगला भाषा का बाल साहित्य पढ़ता था. धीरे-धीरे मेरी कहानियां सभी बाल पत्रिकाओं और समाचार पत्रों तथा अन्य पत्रिकाओं के बाल पाठक स्तंभ में नियमित रूप से प्रकाशित व सराही जाने लगी. ये पत्रिकाएं थीं- चंपक, लोटपोट, पराग, बाल भारती, मेला, बालक, सुमन सौरभ , दैनिक हिंदुस्तान, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नव भारत टाइम्स, ट्रिब्यून, धर्मयुग तथा अनेक राज्यों से उस समय निकलने वाली छोटी-बड़ी पत्रिकाएं. यह सिलसिला अगले पच्चीस वर्षों तक निरंतर चलता रहा और मैं उस दौर के अनेक संपादकों का प्रिय लेखक बन गया. लेकिन सन 1985 में नौकरी के सिलसिले में मुंबई आने के साथ मेरी प्राथमिकता बदली और मेरा संपर्क लेखन के ऑडियो तथा ऑडियो -वीडियो माध्यम से हुआ. कमर्शियल लेखन से भी जुड़ाव हुआ. सो एक तरफ रेडियो के लिए स्पॉन्सर प्रोग्राम जैसे कि एलआईसी के लिए ‘‘विक्रम- बेताल’’ तो दूसरी ओर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के लिए ‘‘ जागो ग्राहक जागो’’ जैसे लोकप्रिय कार्यक्रम सहित अनेक रेडियो प्रोग्राम मूल रूप से लिखे जो उस समय अनेक भाषाओं में अनुवाद होकर प्रसारित हुए. टेलीफिल्म तथा धारावाहिकों के क्षेत्र में भी हाथ आजमाए, लेकिन अपने को अंतत: रास आयी विज्ञापन की दुनिया. पिछले चालीस सालों से इससे जुड़ा हूं. अनेक बड़े कैम्पेन्स का हिस्सा बना हूं.
चलिए मुद्दे पर लौटा जाए. पिछले चार-पांच सालों से हिन्दी बाल साहित्य की दुनिया से सक्रियता से जुड़ा हूं. यहां की गतिविधियों को सजगता से देख भी रहा हूं. कुछ अच्छा और कुछ बुरा भी दिखाई दे रहा है. हिन्दी के अलावा मराठी, बांग्ला और गुजराती के बाल साहित्य तथा साहित्यकारों से भी नेटवर्क बन रहा है. हिन्दी बाल साहित्य को कोसने और कमियां गिनाकर अपने को उससे अलग या श्रेष्ठ दिखाने की कोशिश करने से बेहतर होगा कि इन दिनों हिन्दी बाल साहित्य में जो नया लिखा जा रहा है या मेरी पसंद का लिखा जा रहा है, उस पर चर्चा की जाए.
क्रमश: