रचनाकार : विजय कुमार तैलंग, जयपुर (राजस्थान)
वो सब्जी बेचने वाला गूंगा था। बाजार में जहाँ अन्य सब्जी वाले गला फाड़ फाड़ कर ग्राहकों को अपनी ओर बुलाते थे, वो केवल अपनी मुखाकृति एवं शारीरिक हाव भाव से हकलाता हुआ उन्हें बुलाता था। सब्जी के भाव भी वह एक पत्थर की स्लेट पर चॉक से लिखकर रखता था ताकि ग्राहकों को तुरंत समझ आ जाए। सभी सब्जी वाले उसे “गूंगा” कहते थे और उसका मजाक उड़ाते रहते थे।
घर से चलने से पूर्व वह अपने ठेले पर करीने से ताजी सब्जियाँ लगाता था। मार्ग में ठाकुर साब की हवेली पड़ती थी जहाँ सुबह सुबह अक्सर ठाकुर साब पाईप से अपनी कार धोते हुए मिलते थे। वे एक सेवानिवृत सरकारी अधिकारी थे। सब्जी वाले को आता देख ठाकुर साब अपनी दबंग आवाज से घर की रसोई की ओर मुँह करते हुए पूछते थे- “सब्जी वाला आया है! ताजी सब्जियां हैं! लेनी हैं क्या?” अंदर से ही ठकुराइन साहिबा की आवाज आ जाती कि “लेनी है” या “नहीं लेनी”! उसी के अनुसार सब्जी वाला या तो ठहर जाता या आगे चला जाता था। उसका मोबाइल नम्बर भी उसके ठेले पर एक ओर लिखा रहता था जिसे ठाकुर साब ने भी नोट कर रखा था। ठाकुर साब उसके गूंगे होने पर भी उसकी मेहनत के कद्रदान थे और इसीलिए उसपर मेहरबान भी थे।
एक दिन वह बाजार में अपना सब्जी का ठेला लगाए खड़ा ही हुआ था कि उसके मोबाइल पर ठाकुर साब का फोन आया और उसने फोन सुनकर तुरंत ही अपना ठेला समेटना शुरू कर दिया।
अन्य सब्जी वालों ने उसे ठेला समेटते देख उत्सुकता से इशारे से पूछा -“क्यों समेट रहे हो? ” वो सिर्फ इशारे से उन्हें भी ठेले समेट कर चले जाने के लिए समझा रहा था जिसे समझने पर वे उसपर हँसने लगे। गूंगा ने उनकी परवाह नहीं की क्योंकि मोबाइल पर मिली ठाकुर साहब की खबर पर उसे पूरा विश्वास था। ठेला समेटने के बाद वो जल्दी- जल्दी वहाँ से दूर निकल गया।
कुछ ही देर में नगर निगम की गाड़ी आई और अतिक्रमण हटाने के नाम पर सब्जी वालों के ठेले पलटने शुरू कर दिये। वहाँ हाहाकार मच गया।
दो दिन की नगर निगम की सख्ती के बाद पुन: सब्जी वाले बाजार की रौनक बढ़ाने लगे! उस काण्ड के बाद सभी सब्जी वाले गूंगे सब्जी वाले को गम्भीरता से लेने लगे थे।
ऐसे ही एक दिन गूंगे का मोबाइल फिर बजा तो सभी सब्जी वालों के कान खड़े हो गए। फोन सुनकर गूंगे सब्जी वाले ने पहले की भाँति ही अपना ठेला समेटना शुरू कर दिया। सभी सब्जी वालों को संदेह होने लगा कि कहीं फिर नगर निगम की गाड़ी तो नहीं आ रही? उन्होंने कोई जोखिम लेना ठीक न समझा और उन सबने भी गूंगे सब्जी वाले की तरह अपने ठेले समेटने शुरू कर दिये। गूंगे ने यह देखकर उन्हें रुकने का इशारा किया लेकिन उन्होंने सोचा कि गूंगा खुद बचकर निकल जाना चाहता है जबकि हम सबको उस दिन की तरह फंसाना चाहता है इसलिए सबने अपने अपने ठेले समेटकर निकलना शुरू कर दिया। धीरे धीरे सब्जी बाजार खाली हो गया।
वास्तव में गूंगे सब्जी वाले को फोन करके ठाकुर साब ने अपनी हवेली पर सब्जी देने के लिए बुलाया था क्योंकि ठाकुर साब के घर पर कोई आयोजन हो रहा था और हलवाई से भोजन बनवाया जा रहा था। वहाँ उन्होंने गूंगे सब्जी वाले की ठेला भर पूरी सब्जी खाली करवा ली और उसका पूरा भुगतान भी कर दिया।
मार्ग में खाली ठेला लिए जाते कुछ सब्जी वालों ने उसे देख लिया और हँस कर बोले – “क्यों, आ गया न निगम वालों की गाड़ी के चक्कर में? माल जब्त हो गया न? हम तो बाजार से पहले ही हट गए थे इसलिए हमारे ठेलों पर पूरी की पूरी सब्जी अभी भी जमी हुई है। “
अब वो गूंगा सब्जी वाला उन्हें कैसे समझाए कि वो तो अपनी सारी सब्जी बेच आया था! दिन तो उनका खोटी हुआ है जिनका तब तक भी सब्जी में कुछ नहीं बिका। सारे सब्जी वाले हँसकर गूंगे सब्जी वाले का मजाक बना रहे थे जबकि वक़्त ने उन सभी सब्जी वालों के साथ मजाक किया था।
(काल्पनिक रचना)