रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूप
वैदिक वाड्.मय के अनुसार नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा दुर्गाकवच कहा गया है।
(1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है।
(2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) : ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है।
(3) चंद्रघंटा (चंदुसूर) : यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं।
(4) कूष्मांडा (पेठा) : इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है।
(5) स्कंदमाता (अलसी) : देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है।
(6) कात्यायनी (मोइया) : देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।
(7) कालरात्रि (नागदौन) : यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
(8) महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है।
(9) सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है।
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माता रानी आयेंगी
चौकी नही आसन को सजाओ माता रानी आयेंगी
नौ दिवस तक निज भक्तों पर अपनी दया बरसायेंगी
प्रथम दिवस तुम शैलपुत्री के
नाम से माते आओगी
द्वितीय दिवस तुम ब्रह्मचारिणी
का एक रूप दिखाओगी
तृतीय रूप में माँ चंद्रघंटा तेरा
रूप सुहावन है
चतुर्थ रूप में कुष्मांडा का रूप
अति मनभावन है
पंचम दिवस को स्कंदमाता
ये नाम तुम्हारा है
षष्ठी को कात्यायनी मैं करती
लो प्रणाम हमारा है
सप्तमी दिवस को कालरात्रि
रूप में माँ तुम आ जाना
भक्त तेरी प्रतिक्षा रत हैं अपना
रूप दिखा देना
अष्टम दिन माँ महागौरी के
रूप में माँ तुम आओगी
मुझे पता है इसी दिवस में
सामने तुम आजाओगी
नवमी को सिद्धिदात्री के
स्वरूप में आओगी
उसी रात्रि दुर्गा बनकर महिषा
वध कर पाओगी
शबनम घर आंगन लिपवाओ
माता रानी आयेंगी
नो दिवस तक निज भक्तों पर अपनी दया बरसाएगी
नहीं पता था मुझसे अपने नौ नाम लिखवाएगी
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दया बरसाएगी
आई है नवरात्रि माता सिंह पर चढ़ कर आएगी
अपने सारे भक्त जनों पर अपनी दया बरसाएगी
निर्धन धनी है सभी बराबर एक दृष्टि से तकती है
हर भक्तों पर सूक्ष्म दृष्टि सदा सदा वो रखती है
फूल प्रसाद से भरी हुई सबकी यहाँ पर थाली है
मैं ही एक अकिंचन ऐसी जिसकी थाली खाली है
हे माते मैं आन पड़ी हूँ खाली आपके द्वार
बस मेरी आँखों से बहते आँसू कर स्वीकार
शबनम याचक ख़ुद है माते क्या दूँ मैं उपहार
शीश झुकाकर बस यह कहती कर मेरा उद्धार
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माता जी कल्याण करो
दुख का हमारे तुम निदान करो
है माता जी कल्याण करो
तेरे प्रांगन मे याचक की भीड़
लगी है भारी
कुछ पाने की आशा मै है खड़े
हुए नर नारी
सब को कुछ प्रदान करो
हे माता जी कल्याण करो
सब के हाथों फल फूलों से भरी
हुई है थाली
मै शर्मिंदा हूँ ए माते आई हाथ हूँ
खाली
मुझ पर तनिक सा ध्यान करो
है माता जी कल्याण करो
कुछ तो मेरे पास नहीं है क्या दूँ
मै प्रनामी
मेरे मन की जान लो इच्छा तुम
हो अन्तर्यामी
शबनम माँ को प्रणाम करो
हे माता जी कल्याण करो
दुख का हमारे निदान करो
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माता रानी से विनती (दोहे में)
हे माते हे चंडी भवानी शक्ति की अवतार ।
तेरी शरण में आन पड़ी हूँ करना बेड़ा पार ।
वैश्य समाधि, राजा सुरथ का जैसे किया उद्धार।
वैसे ही मेरा दुख हरना करना मुझपे यह उपकार ।
नहीं पुजापा की है थाली न कोई उपहार ।
बस आंखों की आंसू मेरे कर लेना स्वीकार ।
आंखों से बहती है माते देखो अश्रु धार ।
अब तो यही बना है देवी जीने का आधार ।
“शबनम”का यह आधा जीवन हो ही गया बेकार ।
ऐसा कुछ कर देना माते , जाने यह संसार ।