रचनाकार : सुशीला तिवारी, पश्चिम गांव, रायबरेली
जिस दोस्त की बारात थी उससे मुलाकात कर बधाई दी
फिर कहा,,,
अनिकेत बारात में पहुंच कर दोस्त को बधाई दी ,और कहने लगा यार कुछ देर रूक कर वापस चला जाऊँगा ।
दोस्त ने कहा कि क्यों कल साथ में चलना हमारे
आखिर दोस्त काहे का ,,,
अनिकेत ने कहा सारे कार्यक्रम हो जाने के बाद चला जाऊँगा।
सुबह लखनऊ जाना है और ये जो साथ में आया है।
ये पढ़ाई कर रहा है ,इसलिए लौटना आवश्यक है ,तू आराम से व्याह करके दुल्हनिया लेकर कल आना ।पर मुझे मत रोंक
मेरे दोस्त!
अब जयमाल का कार्यक्रम शुरू हुआ, सुंदर से लिवास में लिपटी हुई दुल्हन बिल्कुल परी सी लग रही थी ,सबकी निगाहें उस सौंदर्य का निरूपण कर रही थीं, सब अपनी अपनी सोंच की आधार पर उपमा दे रहे थे ।
जयमाल का कार्यक्रम समाप्त हुआ ,खान-पान शुरू हुआ ।
अनिकेत अपने साथी के साथ भोजन करके दोस्त से विदा ली ,और चल पड़ा मोटर साइकिल से घर वापसी के लिए।
समय साढे ग्यारह हो चुका था, सड़के बिल्कुल सुनसान।
कभी-कभार एकाध लोग इन्ही के जैसे बगल से निकल जाते।
जो शायद शादी-ब्याह से या किसी जरूरी काम से कहीं गये रहे होंगे।
अनिकेत का साथी अपनी मोटर साइकिल सूनी सड़क पर फर्राटे भरकर दौडाये जा रहा था, गाड़ी की आवाज रात की ख़ामोशी को भंग कर रही थी, धीरे-धीरे गांव के करीब पहुंच गए
अनिकेत का दूसरा साथी जिसका घर पहले ही पड़ता था, उसने कहा अब अनिकेत तुम्हारा घर थोड़ी ही दूर पर है चले जाओगे या छोड़ने चले।
अनिकेत ने कहा नही रहने दे चला जाऊँगा, पांच मिनट का रास्ता है, थोड़ा पैरों का व्यायाम हो जायेगा ।
फिर चल पड़ा अनिकेत पैदल अपने घर की ओर,,,,
अनयास कुत्तों की भौंक से शान्ति भंग होने लगी ,माहौल डरावना हो चला ,दोस्त को भी मना कर दिया था ,रास्ता थोड़ा सुनसान !पेड़ पौधे झाड़ियों से होकर गुजरता था बगल में एक पुराना छोटा सा कुंआ भी था,
जैसे ही अपने घर की तरफ जाने वाले मोड़ पर मुड़ा ,,,,,
क्या देखता है एक स्त्री कुंए के ठीक सामने बीच रास्ते में बिल्कुल सफेद रंग के वस्त्र में मुँह ढककर खड़ी है।
अब तो अनिकेत का डर से बुरा हाल हो रहा था,
पीछे कुत्तों की डरावनी सी आवाज ,
आगे एक स्त्री जिसका सफेद लिवास ,
अजीब कश्मकश थी पीछे लौट जाये या घर की तरफ आगे जायें ।
हिम्मत और कायरता के बीच जंग शुरू हो गई, आखिरकार हिम्मत की जीत हुई, उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली ।
इतने में हनुमान जी याद आ गये !
जोर जोर से ,,,,जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ,जय कपीस तिहुं लोक उजागर का उच्चारण करते हुए तेज कदमों से चलते हुए उस स्त्री की बगल से निकल कर आगे बढ़ गए ।
फिर तो इतने जोर की दौड़ लगाई कि थोड़ी देर में अपने घर के दरवाजे पर खड़े थे । आवाज लगाई दरवाजा खोल कर अंदर आकर सीधा घड़ी के पास खड़े होकर धीरे से दबी आवाज में कहा , बारह बजे हैं। किसी को कुछ नही बताया।
फिर जाकर सो गया।
सुबह उठकर मां को रात वाली पूरी दास्तान सुना दी ।
मां कहने लगी वहाँ पर भूत प्रेत का वास है, कई लोगों को मिल चुकी है ।
अब से बारह बजे के बीच कही मत आना जाना
गलत शक्तियों का प्रभाव रहता है।
अनिकेत ने पुनः सवाल किया,
आखिर,,, वो कौन थी?
(अस्वीकरण : मेरा उद्देश्य किसी को डराना या रूढ़िवादिता का समर्थन करना बिल्कुल नही है )
(काल्पनिक रचना)