रचनाकार : अमर गोस्वामी, धौलपुर (राजस्थान )
लता का पति इन दिनों बीमार चल रहा था। और वो उसे भरतपुर से अकेली ऐंबूलेंस में जयपुर लाकर अस्पताल में भर्ती करा देती
है । भर्ती में लिखा पढ़ी के कागज की पूर्ति से लेकर दवाई आदि का इंतजाम का जिम्मा लता पर था । इस दौरान उसके लड़के व बहु नदारद थे ।
लता के लड़के और बहु को अपने माता पिता की कोई फ्रिक नहीं थी । लेकिन उनकी प्रोपर्टी में बारिश होने की इच्छा जरूर थी । ऐसा लता ने पति को भर्ती कराने के बाद , इलाज चालू हो जाने के बाद , आई . सी . यू . के नीचे वेटिंग हॉल में एक अन्य मरीज़ के परिजनों को बताया ।
साथ में लता ने अपने दबे स्वर में यह भी बताया की उसके लड़के और बहु उसकी उपेक्षा करते हैं। किंतु लता को भावनात्मक रूप से भले ही बच्चे और बहु की जरुरत हो पर शारीरिक रूप से वो अभी भी अपने सभी कामों में सक्षम है । लता अकेली ही अपने पति की देखभाल अस्पताल में कर रही थी । और हर हाल में खुश थी । यहां भी लता के मजबूत इरादों की और अपने कर्तव्य बोध के बलबूते पर लता की जीत हुई और लता अपने पति को ठीक कराकर , अस्पताल से छुट्टी कराकर अपने गांव ले गयी ।
अस्पताल में लता का व्यवहार सभी मरीजों और उनके परिजनों के साथ बड़े प्रेम का था । लता सभी से राजी खुशी के रोज समाचार लेती और लोगों को ढांढस बंधाती। लता जाते जाते यह सीख भी दे गई कि मुश्किलें कितनी भी कठिन हों , हमें हार नहीं माननी चाहिए। लता से और लोगों को भी हौसला मिला ।
जाने से पहले लता ने एक वाक्या और सुनाया था । लता का पति इससे पहले भी बीमार हो गया था। बीमारी के चलते वो छः महिने कोमा में रहे । लता तब भी अपने पति को अकेले ही देश की राजधानी दिल्ली के एम्स अस्पताल में लेकर गई थी । लता ने तब भी दिन रात एक कर दिया था । रात को लता अस्पताल की बैंच पर उकड़ू लेटी रहती थी । और पति की सेवा करती रहती थी ।
लकवा होने के कारण उधर पति का मुंह खुला रहता और पलक नहीं झपकती और इधर लता की दिन रात चिंता के पलक नहीं झपकती । एक आहट से लता की नींद खुल जाती । और लता फिर अपने कर्तव्य पथ पर तरोताजा हो जाती । बहुत लंबे इलाज के बाद , सुधार होने के बाद और कोरोना आ जाने के कारण लोगों ने सलाह दी कि इन्हें बी. एस . एफ . के अस्पताल में भर्ती करा दो। चूंकि लता का पति बी.एस.एफ. में एक जांबाज सैनिक था । लता ने पति को बी. एस.एफ. के अस्पताल में भर्ती करा दिया । वहां भी लता का धैर्य कर्तव्यनिष्ठा आले दर्जे की थी । लता का पति लकवे का कारण चलने में असमर्थ हो गया था।
हर सुबह उसकी आंख से आंसू निकलते और सोचता जिसने अपनी पूरी नौकरी देशभक्ति के साथ अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ दुश्मनों को धूल चटाई, वो अब चल पायेगा भी की नहीं। लता पति को हिम्मत दिलाती । लता की सेवा से उसका पति अब फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो गया। भले ही वाकर और बैसाखियों के सहारे ही सही ।
(काल्पनिक रचना )