रचनाकार : हेमन्त पटेल, भोपाल (मप्र)
ड्रायवर ने अपने साहब को देखने यूहीं बैक मिरर में देखा। दोनों की नजरें टकराईं, वे असहज हुए। इसी बीच उसने पिछली जेब से रूमाल निकाला, वह चष्मा हटाकर आंसू पोछने को ही हुआ कि अजय ने पूछा- ”क्या हुआ“
कुछ नहीं सर…, यहां लोग करोड़ों-अरबों का गबन कर जाते हैं, कुछ की हर रात पार्टी के बगैर नहीं गुजरती तो कुछ लोग (अख़बार की ओर दिखाते हुए) लक्ष्मी जैसे हैं, जिन्हें भात तक नसीब नहीं होता।
हम कितने मतलबी, खुदर्गज होते जा रहे हैं। कोई भूख से मर रहा है, और हमारे दिल पर असर नहीं होता, माथे पर बल तक नहीं पड़ता। लक्ष्मी को खाना नहीं मिला, इसका जिम्मेदार कौन है पता है आपको….
इसका जिम्मेदार जिला स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO)और जिला कलेक्टर (DM) दोनों हैं।
अजय चौकें – ”कैसे“?
सर! जब कोई सिविल सर्विस की तैयारी करता है, तो कोई उससे पूछता है, क्यों IAS, IPS बनना चाहते हो; तो उसका सिर्फ एक जवाब होता है मैं समाज में बदलाव लाना चाहता हूँ, और जब पोस्ट पर पहुँच जाते हैं तो सब गायब। अपने ईमान को हर पल, हर दिन जीना पड़ता है; तब वह एक इंसान बनता है।
(अजय सुनते रहे)
कलाम साहब के पिता घर पर नहीं थे, एक व्यक्ति एक कपड़ों की गठरी लाया। उसने कलाम साहब से पूछा पकीर साहब कहां हैं। वह बोले कहीं गए हैं, तो वह गठरी रख कर चला गया। कलाम साहब कुछ पढ़ रहे थे। पिता सरपंच हो चुके थे, इसी काम से बाहर थे। उनके पिता जब घर पहुँचे तो उन्होंने पूछा- यह किसका है? कलाम साहब ने कहा- आपके लिए कोई दे गया है। पिता ने कलाम से पूछा- वह कौन था? कलाम साहब को यह पता न था। पिता ने बेंत उठाई और तब तक मारा जब तक नन्हें कलाम लाल न हो गए।
और कहा- जब खुदा आपको कोई पद, सोबत देता है, तो आपके खाने का बंदोबस्त करता है। अपनी मजूरी के अलावा लिया गया सब कुछ हराम है। इसे कलाम साहब ने जीवन भर जिया।
मैं भी तैयारी करता था; मेरा सिलेक्श नहीं हुआ, तो क्या, मुझसे जैसा बनता है वैसा करता हूँ। खुद की एड एजेंसी में मैंने कईयों को रखा; भले ही मेरे पास उतनी जगह नहीं थी फिर भी, और ईष्वर उसे चलाता है।
अजय – तो आप IAS एस्पायरेंट रहे हैं,
विक्रांत – जी।
अजय – CMHO तो समझ आता है, कलेक्टर कैसे जिम्मेदार है इसके लिए, वह जाकर तो नहीं देख सकता।
विक्रांत – हां सर, वह जाकर नहीं देख सकता, लेकिन जब यह स्थिति है और इस बारे में प्रशासन को पता है तो वह हर दो माह में समीक्षा तो कर सकता है।
अजय- समीक्षा तो होती है।
(क्रमशः )