रचनाकार : दिविक रमेश, नोएडा
क्या यह कविता पारम्परिक ढंग की राजा-रानी पर लिखी कविता है? क्या यहां वही सामंतीय मूल्यों वाला राजा है जिसके सामने जबान खोलना भी अपने को सूली पर चढ़ाने का न्योता देना है?
यह प्रजातंत्र के मूल्यों को स्थापित करती हुई एक ऐसी कविता है जिसे पढ़कर ताली बजा-बजा कर मजा लिया जा सकता है। कल्पना पहले के साहित्य में भी होती थी और आज के साहित्य में भी उसके बिना काम नहीं चल सकता। अंतर यह है कि आज के बालक को कल्पना विश्वसनीयता की बुनियाद पर खड़ी चाहिए। अर्थात वह ’ऐसा भी हो सकता’ है ’ अथवा’ ‘ऐसा भी हुआ होगा’के दायरे में होनी चाहिए अन्यथा वह रद्दी की टोकरी में फेंक देगा।
दूसरे शब्दों में आज का बालसाहित्यकार ऐसी रचनाएं नहीं देना चाहता जो अन्धविश्वास, सामन्तीय परम्पराओं, जादु -टोनोँ,अनहोनियो अथवा निष्क्रियता आदि मूल्यों की पोषक हों। आज की कहानियों में भी भूत, राजा, परी आदि हो सकते लेकिन वे अपने पारम्परिक रूप से हटकर, ऊपर संकेतित पुरानेपन से अलग तरह के होते हैं। आज की कहानी की परी ‘ज्ञान परी’ हो सकती है, संगीत परी हो सकती है। भूत औरों को बेवकूफ बना रहा शैतान या दुष्ट बच्चा हो सकता है जिसकी पोल अंतत: खुलनी ही होती है।
चांद के अनुभव पर एक कविता है- बालस्वरूप राही की। यह कविता चांद पर नहीं है बल्कि नई दृष्टि पर है। एक वैज्ञानिक समझ किस प्रकार रचना में पूरी तरह रचा-बसा कर पेश की जा सकती है कि वह एक कलात्मक अनुभव के आनन्द से लहलहा उठे, इसका नमूना है यह कविता। हमारे यहाँ विज्ञान और आधुनिकता का मात्र अलाप करते रहने वाले इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। कविता इस प्रकार हैः
चंदा मामा, कहो तुम्हारी शान पुरानी कहाँ गई,
कात रही थी बैठी चरखा, बुढ़िया नानी कहाँ गई?
सूरज से रोशनी चुराकर चाहे जितनी भी लाओ,
हमें तुम्हारी चाल पता है, अब मत हमको बहकाओ।
है उधार की चमक-दमक यह नकली शान निराली है
समझ गए हम चंदा मामा, रूप तुम्हारा जाली है।
बाल-विज्ञान लेखन और राजा-रानी, परी कथाओं,लोककथाओं पुराणों या इतिहास पर आधारित रचनाओं के संदर्भ में जो विवादयुक्त टिप्पणियां होती हैं उनके पीछे न तो रचनाओं के आधार पर सुचिन्तित मंथन दिखता है और न ही खुला विचार।
देवेंद्र मेवाड़ी के शब्दोँ में-“ विज्ञान लेखन करते समय बच्चों को मन के आँगन में बुलाना होगा और जैसे उनसे बातें करते –करते या उन्हें किस्से- कहानियाँ या गीतों की लय मेँ विज्ञान की बातें बतानी होंगी। … विज्ञान की कोई जानकारी कथा -कहानी के रूप में दी जाएगी तो उसे बच्चे मन लगा कर पढ़ेंगे । ध्यान दिया जाए कि यहां जानकारी देने पर अधिक जोर है। कविता, कहानी आदि फॉर्म भर हैं।
मेरी दृष्टि में बालसाहित्य से तात्पर्य ऐसे साहित्य से है जो बालोपयोगी साहित्य से भिन्न रचनात्मक साहित्य होता है अर्थात जो विषय निर्धारित करके शिक्षार्थ लिखा हुआ न होकर बालकों के बीच का अनुभव आधारित रचा गया बाल साहित्य होता है । वह कविता, कहानी नाटक आदि होता है न कि कविता, कहानी, नाटक आदि के चौखटे अथवा शिल्प मे भरी हुई विषय प्रधान जानकारी, शिक्षाप्रद अथवा उपदेशपूर्ण सामग्री होता है।
वह विषय नहीं बल्कि विषय के अनुभव की कलात्मक अभिव्यक्ति होता है। दूसरे शब्दों में कलात्मक अनुभव होता है । इसीलिए वह मौलिक भी होता है।
(क्रमशः)