रचनाकार : विजय कुमार तैलंग, जयपुर
लगभग भीगी काया लेकर मेरी खिड़की के छज्जे के नीचे आ खड़ा हुआ वह बन्दा, बारिश के बन्द होने की राह देख रहा था। उसके जूते भी अवश्य ही कीचड़ से सने होंगे।
मैंने अचानक खिड़की से आती रोशनी में कुछ व्यवधान देखा तो मेरी नजर उस पर पड़ी। खिड़की के सहारे मेज लगाकर, कुर्सी पर बैठकर मैं छुट्टी के दिन का आनंद लेते हुए एक कविता लिखने में व्यस्त था कि उस पर मेरी नजर पड़ी।
वह मेरी तरफ पीठ करके खड़ा हुआ था। उसकी नजर सामने सड़क पर पड़ती बारिश की बूंदों पर जमी थी। उसे जरा भी एहसास नहीं था कि खिड़की के भीतर से कोई उसे देख रहा था। उसे शायद इसकी परवाह भी नहीं थी। वह तो बारिश रुकने तक खिड़की के छज्जे के नीचे खड़ा रहना चाहता था। खिड़की पर लोहे के सरिये वाली जाली फिट थी।
मैंने उसका ध्यान खींचने के लिए खँखारा। उसने एकाएक मुड़कर मेरी तरफ देखा और अभिवादन किया। वह थोड़ा सा खिसियाता हुआ बोला – “बारिश तेज हो रही है बाबूजी। “
उसकी तरफ से संवाद शुरू होने पर मैंने सोचा कि जब तक बारिश पड़ रही है, ये बंदा खिड़की से हटेगा नहीं और इतनी कम रौशनी में मैं भी कुछ लिख नहीं सकूँगा तो क्यों न इसी से कुछ बातें की जाएंं।
“हाँ, देख रहा हूँ। बिजली भी गई हुई है इसलिए मकान में घने काले बादलों से अंधेरा छाया हुआ है। थोड़ी बहुत रौशनी इसी खिड़की से आ रही थी जहाँ तुम खड़े हो! ” मैं बोला।
“ओह! क्या आप कुछ पढ़ रहे थे यहाँ?” उसने अपनी उपस्थिति से आये व्यवधान से जरा व्यथित होते हुए पूछा।
मैं बोला – “पढ़ नहीं रहा था, कविता लिख रहा था।”
“बरसात पर? ” वह तपाक से बोला।
“हाँ! ” मैंने हामी भरी। उसकी आँखें मेरा उत्तर सुनकर चमकीं।
“तुम क्या सोच रहे हो?” मैंने उसे अपनी ओर देखते हुए पूछा।
“क् कुछ नहीं, मैं असल में अपनी बेटी के स्कूल तक जा रहा था एक कविता की बुक देने जो मैंने अभी अभी खरीदी थी लेकिन रास्ते में जोरदार बारिश होने के कारण आपकी खिड़की के छज्जे के नीचे खड़ा हो गया।”
“तुम्हारी बेटी कौन से स्कूल में, कौन सी क्लास में पढ़ती है?”
“वह पास ही नारायण भारती शिक्षा मन्दिर स्कूल में पांचवीं क्लास में पढ़ती है।”
“… तो उसे कविताओं की बुक देने जा रहे हो! “
“जी, असल में आज उसकी खेल घंटी के बाद कविता प्रतियोगिता है। उसने मुझे कोई हिंदी कविता की बुक ला देने के लिए कहा था। उसे बरसात पर बाल सभा में एक कविता सुनानी है। जिसकी कविता का चयन अच्छा लगेगा, स्कूल की तरफ से उसे एक मैडल और सर्टिफिकेट मिलेगा।
“… भले ही कविता छपी हुई हो या किसी से भी लिखवाई हो?” मैंने स्पष्ट करना चाहा।
“बेटी ने बताया था कि कविता लिखने की जरूरत नहीं, छपी हुई भी पढ़ सकते हैं। चयन तो श्रेष्ठ कविता के अनुसार ही होगा। “
“जो किताब तुम ले जा रहे हो, क्या उसमें बरसात की कविता है?” मैंने पूछा।
क्रमशः (काल्पनिक रचना )