रचनाकार : सुनीता मिश्रा, देहरादून, उत्तराखंड
प्रज्ञा ने विवश होकर वह पत्र ले पर्स में डाल लिया।
बातों बातों में समय का पता नहीं चला बहुत देर दोनों स्कूल के दोस्तों और शिक्षकों के बारे में बातें करते रहे।
”अच्छा ठीक है बहुत देर हो गई मैं चलती हूॅं।” और प्रज्ञा उठ खड़ी हुई !
”चलो मैं तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूॅं। इसी बहाने तुम्हारा घर भी देख लूंगा” आदेश कॉफी हाउस से बाहर निकलते हुए बोला।
“नहीं -नहीं मेरा घर पास में ही है मैं चली जाऊंगी। तुम्हें घर जरूर बुलाती,,,, किंतु अभी मेरे पतिदेव ऑफिस में है घर पर नहीं है। इसीलिए उनकी गैरहाजिरी में मैं तुमको लेकर नहीं जा सकती! फिर कभी उनसे तुम्हें मिलवाऊंगी।” प्रज्ञा मुस्कुराते हुए आदेश को बाय करके अपने घर का रास्ता पकड़ आगे बढ़ गई ।
प्रज्ञा खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश करती रही थी, किंतु उसके अंतर मन में एक पीड़ा उमड़ आयी थी।
प्रज्ञा अपने किशोर अवस्था के स्कूल के पलों में पहुंच गई थी। रीमा और प्रज्ञा दोनों गहरी सहेली थी। साथ में उठना बैठना खाना हद से ज्यादा दोस्ती दोनों की शादी भी एक ही साल में हुई थी। आदेश क्लास का एक साधारण बच्चा था। बहुत ज्यादा मेधावी नहीं था किंतु मेहनती था। लंच टाइम में शिक्षक जनों के पास में बैठकर पढ़ना, छुट्टी के बाद स्कूल में पढ़ाई के लालच में रुके रहना, यह उसकी आदत थी।
एक साधारण रंग रूप का लड़का शांत धैर्यवान क्लास के तीसरी या चौथी बेंच पर बैठने वाला देश के सर्वश्रेष्ठ मेडिकल क्षेत्र में अपना योगदान दे रहा है।
क्लासरूम में प्रज्ञा की नजर जब भी लड़कों के बेंच की तरफ जाती, आदेश को अपनी तरफ देख मुस्कुराते हुई पाती।
प्रज्ञा भी एक साधारण सी रंग रूप वाली लड़की थी।
क्लास में बहुत सारे मेधावी और देखने में आकर्षक दिखने वाले लड़के थे।
किंतु उसे सारे क्लास में आदेश ही सबसे योग्य लगता था हालांकि टॉपर की दौड़ में वह बहुत पीछे था।
किशोर अवस्था में क्लास रूम में लड़के लड़कियों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण यह कोई नई बात नहीं,
शायद यह हर एक की जिंदगी में आता है। प्रज्ञा भी उससे वंचित नहीं रह पाई थी। दिल के एक कोने में आदेश उसे अच्छा लगता था ।
किंतु सिर्फ एक दूसरे को देख मुस्कुरा देने के अलावा कभी कोई और बात नहीं हुई। मर्यादा बनाए रखना और माता-पिता की इज्जत का ख्याल रखना इसे प्रज्ञा अपना पहला कर्तव्य समझती थी ।
रीमा क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की थी। उतनी ही चंचल बात करने का तरीका भी खूबसूरत और मनमोहक अंदाज हर कोई उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाता था।
प्रज्ञा को रास्ता बहुत कठिन लग रहा था !
क्रमश: