रचनाकार : सुशीला तिवारी, रायबरेली
बम बम बोल रहा है काशी
बम -बम बोल रहा है काशी ।
मैं हूँ दास अधम अकिंचन ,
हर , आदि ब्रह्म अविनाशी ।
मैं हूँ पतित,पतित पावन शिव,
पार करो हे ! गंगाधर कैलाशी ,
बम – बम बोल रहा है काशी ।
निर्बल तारो अधम उबारो ,
मैं चरण कमल की प्रभु दासी ।
बम – बम बोल रहा है काशी ।।
हृदय कुंज में आय बिराजो ,
अब हे ! घट – घट के बासी ।
बम – बम बोल रहा है काशी ।।
करूँ साधना हर पल छिन में,
काटो अब यम की फांसी ।
बम – बम बोल रहा है काशी ।।
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जय शिव शम्भू
हे ! त्रिपुरारि जय मद हारी, आदि ब्रह्म अविनाशी,
भक्ति – भाव से दर्शन करने आया चलकर काशी!
मेरे दैहिक- दैविक पाप हरो हे भोले शम्भू कैलाशी ,
मन में भरे विषय -विकार मेरे मैं हूँ तम कलुषा सी!
योग साधना ज्ञान ध्यान दे के सुधारो घट घट वासी,
हे! योगेश्वर, हे !गंगाधर मैं हूँ चरण शरण की दासी!
अधम उबारो, दु:ख निवारो,हे ! भोलेनाथ दयामय ,
मेरे सिर पर हांथ रक्खो हे!मदन दहन करूणा मय!
आशुतोष”जग की मोह मयी निद्रा से मुझे जगाओ,
विषय -वेदना से बिषयों की हे !मायाधीश छुड़ाओ!
तुम बिन है”तिवारी”व्याकुल आओ शिव शम्भू मेरे,
चरण- शरण की बांह गहो हे!उमापति भगवंत मेरे!
हे ! त्रिपुरारि जय मद हारीआदि ब्रह्म अविनाशी!
भक्ति- भाव से दर्शन करने आया चलकर काशी!!
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महादेव सा वर पाकर
मां पार्वती जी धन्य हुई, महादेव सा वर पाकर।
उनको पाने हेतु किया, कठिन तपस्या जाकर।।
खान पान भी छोड़ दिया एक पैर पर खड़ी रही,
मातपिता ने समझाया पर वो जिद पर अडी रही ,
लिया परीक्षा सप्तऋषि ने उनके पास में जाकर।
उनको पाने हेतु किया , कठिन तपस्या जाकर।।
भूत -प्रेत की टोली लेकर आये शंकर भोले बाबा ,
रूप भयानक देख प्रभु का मैना को दुख लागा ,
हो भयभीत कहा पति से वर कैसा खोजा जाकर।
उनको पाने हेतु किया , कठिन तपस्या जाकर।।
शैल सुता ने जाकर माता को है ये समझाया ,
जन्म -जन्म शिव ही वर पाऊं ये वरदान है पाया ,
धन्य हो गया जीवन मेरा शिव की शरण में जाकर।
उनको पाने हेतु किया, कठिन तपस्या जाकर ।।
जीवन किया समर्पण अपना ,दीन हीन बतलाकर।
उनको पाने हेतु किया , कठिन तपस्या जाकर।।
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सावन में आना जरूर
पिया प्रियतम परदेश,
लिख भेजा संदेश ,
अबकी सावन मे आना जरूर ,
तुम्हारी राह देखूंगी।
दिल का हाल लिखा मेरे दिलवर
पढ़ना अंखियों के मेरे नूर,
तुम्हारी राह देखूंगी।
प्यार छुपा हर शब्दों में मेरे
पढ़ के चूम लेना खत को हजूर ,
तुम्हारी राह देखूंगी।
रिम झिम सावन की रात नशीली
खत लिखने को हुई मजबूर,
तुम्हारी राह देखूंगी।
चूड़ी हरी लाना बिन्दी हरी लाना
पिया ले आना लाल सिन्दूर,
तुम्हारी राह देखूंगी।
जहा संयोग बियोग वही है
यही समझ के रह लेती दूर,
तुम्हारी राह देखूंगी।