प्टर – 5
इंस्पेक्टर को कंचन अपार्टमेंट की सोसाइटी के रिकॉर्ड से पता चला कि नदीम का दिया हुआ मोबाइल नंबर किसी ओमप्रकाश का नहीं बल्कि व्योमकेश साहू का था । उसने पता लगा लिया था कि यह साहू कहीं और का नहीं बल्कि योगगुरु के पड़ोस के फ्लैट नंबर 105 का निवासी है।
साहू ने योगगुरु पर हमले की साजिश क्यों रची? उसने जुर्म की सूचना उसे क्यों दी? वारदात वाले समय तो वह कहीं बाहर पार्टी में गया हुआ था। सोसाइटी के गार्ड ने इस बात की पुष्टि कर दी थी। अब इंस्पेक्टर मानवेंद्र को यह मामला जरूरत से ज्यादा उलझता लग रहा था। फिर भी उसने ठान लिया था कि वह हाफ मर्डर की इस अजीब सी वारदात का पूरा रहस्य जानकर ही रहेगा।
ज्यों—ज्यों जांच आगे बढ़ती गई योगगुरु पर हमले की साजिश की परतें खुलती गईं।
इंस्पेक्टर मानवेंद्र ने अपने दो भरोसेमंद साथियों को साहू पर नजर रखने के लिए सादा कपड़ों में कैम्पस में तैनात कर दिया। जब योगगुरु अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर आ गए तो उसने फिर उनसे पूछताछ का मन बनाया।
योगगुरु के फ्लैट में पहुंचकर इंस्पेक्टर ने सवाल—जवाबों का सिलसिला शुरू किया। योगाचार्य तथा अन्य लोगों से बातचीत में पता चला कि 105 नंबर में रहने वाला साहू छह महीने पहले ही यहां आया है। उसने यह फ्लैट चार लाख रुपये अधिक देकर ब्लैक में खरीदा है। वह दो बार योगाचार्य के घर पर आया था। एक बार तो तब उसने फ्लैट की नांगल की थी और दूसरी बार तब जब योगाचार्य के पास दो करोड़ रुपये की एक एंटीक मूर्ति शाल भंगिका के होने की खबर अखबारों में आई थी। यह मूर्ति योगाचार्य के पिता दिवाकर विरासत में छोड़कर गए थे।
दिवाकर पुरातत्व विभाग में सर्वेक्षक थे। उन्हें यह मूर्ति पहाड़पुर की खुदाई में जमीन में दबी मिली थी। 1970—80 के दशक में उस मूर्ति के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं मिल सकी थी ।अत: दिवाकर ने मूर्ति को अपने संदूक में बंद करके रख दिया था। जब वे दिवंगत होने को थे तो इस मूर्ति के बारे में वसुधाकर को बता गए थे।
दो साल पहले जब वसुधाकर का परिवार आर्थिक मुश्किलों से घिर गया था तो उन्होंने इस मूर्ति को बेचने की कोशिश की। इस मूर्ति के अपने पास होने की बात अखबारों में पब्लिसिटी के लिए छपवाई थी। पर सफलता नहीं मिली। तब जैसे—जैसे लोन आदि का जुगाड़ करके वसुधाकर और गोल्डी ने अपने परिवार की गाड़ी को बेपटरी होने से बचाया था।
इंस्पेक्टर को साहू के बारे में जांच से यह पता चला था कि वह क्या करता है क्या नहीं इसके बारे में आस—पड़ोस में किसी को पता तक नहीं है। वह ऐशो—आराम की जिंदगी जीता था। अक्सर शाम को पार्टी करना उसका शगल था। उसकी पार्टियों में आसपास के छुटभैये नेता, दो चार अच्छे सरकारी विभागों के अधिकारी आदि शिरकत करते रहते थे।
यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने देर रात साहू के फ्लैट को घेरकर छापा मारा। साहू ने अपने आप को पुलिस से घिरा पाकर समर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी। उसके फ्लैट में एक गुप्त अलमारी से ढ़ेरों एंटीक वस्तुएं बरामद हुईं।
साहू ने थाने में की गई कड़ी पूछताछ के दौरान बताया कि उसके तार राजस्थान में सक्रिय कुख्यात मूर्ति तस्कर जोगी चौहान के साथ जुड़े हुए हैं। उसे जब योगाचार्य के घर एंटीक मूर्ति होने का पता अखबारों से चला तो उसने कैम्पस में फ्लैट खरीद कर वह मूर्ति हथियाने की साजिश रची। साहू ने दूसरी मुलाकात में वसुधाकर से पूछा था कि वह मूर्ति उन्होंने कहां रखी है। तब वसुधाकर ने उसे बेडरूम में रखे संदूक से निकालकर वह मूर्ति दिखाई थी।तब उसने इस मूर्ति को पचास लाख रुपये में खरीदने की पेशकश की थी पर वे इसे बेचने को तैयार नहीं हुए थे। जब योगगुरु नहीं माने तो उसने उन्हें जान से मारने की कोशिश की।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )