चैप्टर – 1
स्टर्लिंग एन्क्लेव वह सुबह आम सुबह जैसी नहीं थी। आक्रोश से भरी सैकड़ों महिलाएं स्थानीय मंदिर के प्रांगण में जमा हो रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो आज कोई बड़ी घटना होने वाली है। यही सब भांपकर दर्जनों मीडियाकर्मी वहां आ रहे थे। करीब 10 बजे जब अच्छा खासा मजमा लग गया तो आधी दुनिया विचार मंच की अध्यक्षा सुशीला देवी ने लाउडस्पीकर संभालकर भाषण देना शुरू कर दिया।
सुशीला देवी — मेरी प्यारी बहनों! आज हम यहां अपने अधिकारों को पाने के लिए यहां एकत्रित हुई हैं। आपने टीवी पर आने वाला सीरियल पुलिसवाली तो देखा ही होगा। उसमें हम महिलाओं से जुड़ा संगीन मुद्दा उठाया गया है। उसमें घर की महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया गया है कि वे घर के काम—काज करने के लिए अपने हसबैंड से सैलरी मांगे! सच। महिला अधिकारों का सच्चा समर्थक है यह सीरियल! उसी से प्रेरणा लेकर मैंने यह आंदोलन शुरू किया है। अब से हम घर का कामकाज करने के लिए अपने पति से सैलरी मांगेंगी और यदि हमें सैलरी देने से उन्होंने इनकार किया तो हम खाना बनाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, बच्चों को संभालना आदि जैसे तमाम काम बंद कर देंगी। फिर एक दिन हमारे हसबैंड को हमारे सामने झुकना ही होगा। उन्हें हम अपने लिए सैलरी का अच्छा खासा हिस्सा देने पर मजबूर कर देंगी। बोलो मेरे साथ नारी शक्ति की जय! हमारी मांगें पूरी करो! बिना सैलरी दिए नहीं चलेगा घर का ,घर का काम!!
उनके यह कहना पूरा होने के साथ ही वहां मौजूद महिलाएं भी नारेबाजी करने लगीं — नारी शक्ति की जय! हमारी मांगें पूरी करो! बिना सैलरी दिए नहीं चलेगा घर का घर का काम,घर का काम!! इसके साथ ही प्रांगण का माहौल गरमा गया और मीडियाकर्मी आक्रोशित महिलाओं की फोटो और वीडियो धड़ाधड़ अपने—अपने अखबारों व चैनलों को भेजने लगे। सोशल मीडिया पर इस आंदोलन के वीडियो वायरल होने लगे।
इस शोरगुल ने अर्चना का भी ध्यान अपनी ओर खींचा। वह सरकारी दफ्तर में क्लर्क वेद प्रताप की बीबी थी। उसके पति दफ्तर जाने की तैयारी में ही थे वह उनके सामने पहुंच गई और हाथ पसारकर बोली ।
अर्चना — निकालो मेरी सैलरी!
यह सुनकर वेद प्रताप अचकचा गए। वे चौंककर बोले ।
वेद प्रताप — यह क्या तमाशा है डियर! महीना बीतने में पूरे दस दिन हैं। अभी तो मुझे भी सैलरी नहीं मिली है। अपनी बिटिया रानू की स्कूल की फीस भी भरनी है और मुझे अपनी दवाइयों का खर्चा भी देखना है। तुम्हें तो मालूम है कि मैं हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज से पीड़ित हूं। पिछले महीने ही डायबिटीज बढ़ने के कारण चार दिन अस्पताल में बिताने पड़े थे। यह बात ठीक है कि तुमने उस समय मेरी अच्छी तरह से देखभाल की थी। फिर मैं तुम्हें वार—त्यौहार, बर्थ डे आदि पर कैश के साथ गिफ्ट आदि देता हूं कि नहीं?
अर्चना — वो तो तुम्हारा फर्ज है और मुझे जैसे कोई बीमारी होती ही नहीं। देखो, मुझे पेट की तकलीफ निरंतर बनी रहती है। हाथ—पैरों में दर्द बना रहता है। फिर भी रोज सुबह उठकर वही चूल्हा—चक्की! नाश्ता—टिफिन—खाना बनाना! आप लोगों के जूठे बर्तन साफ करना और मैले—कुचैले कपड़े धोना! कब सुबह से रात हो गई पता ही नहीं चलता। बोलने के आवेश में वह कब अपने पति के लिए ‘आप’ की जगह ‘तुम’ शब्द पर आ गई उसे पता ही नहीं चला। वह रोष भरे स्वर में बोली — एक तुम हो तुम्हें अपने दफ्तर से ही फुर्सत नही मिलती। तुम्हें तो संडे—सटरडे की छुट्टी मिल जाती है पर मेरे नसीब में तो वह भी नहीं है। क्या बकवास बनकर रह गई है जिंदगी!
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )